स्वास्थ्य कर्मचारियों की हड़ताल के चलते बंद रहे हेल्थ वेलनेस सेंटर

अमृतपुर, समृद्धि न्यूज। स्वास्थ्य विभाग के संविदा कर्मचारियों ने अपनी मांगों को लेकर सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है।
जानकारी के अनुसार ब्लॉक राजेपुर के अंतर्गत आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर के 23 उपकेन्द्र संचालित हैं। इन केन्द्रों पर संविदा कर्मचारी भी तैनात हैं। सरकार जिनकी हाजिरी ऑनलाइन लेकर सरकारी वेतन के रूप में 20 हजार 500 रुपये प्रति माह प्रदान करती है। जिसको लेकर इन्होंने सरकार से गुहार लगाई है कि वह उनके वेतन को अन्य राज्यों की तरह 25000 हजार रुपये करें, परंतु उनकी मांगों को नहीं माना गया। जिसको लेकर यह कर्मचारी पिछले तीन दिनों से लखनऊ मुख्यालय में प्रदर्शन करने के लिए मजबूर हो गए। हाथों में बैनर और झंडा लिए सडक़ों पर निकले यह कर्मचारी सरकार से वेतन वृद्धि को लेकर लगातार आवाज बुलंद कर रहे हैं। राजेपुर ब्लॉक के अंतर्गत 23 आयुष्मान उप केंद्र हैं जिसमें लीलापुर, बिजपुरिया, भावन, अमृतपुर, करनपुर, सलेमपुर, सरहा आदि में संचालित है और यहां कर्मचारी भी तैनात है। इन कर्मचारियों को देहात क्षेत्र में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया गया है और इन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है कि वह गर्भवती महिलाओं का समय से टीकाकरण, नन्हे मुन्नों का टीकाकरण, परिवार नियोजन की जानकारी, स्वास्थ्य संबंधित अन्य जानकारी, बीमार परेशान व्यक्ति का मेडिकल चेकअप कराना और इन्हें स्वास्थ्य उपकेंद्र तक पहुंचाना व इन्हें समय से दवाई उपलब्ध कराना इन लोगों की जिम्मेदारी है। ग्रामीण क्षेत्र की बड़ी जिम्मेदारी निभाने वाले यह स्वास्थ्य केंद्र के कर्मचारी अपनी छोटी सी सैलरी को बढ़वाने के लिए आज सडक़ों पर उतरने के लिए मजबूर हो गए है। केंद्र संचालकों का कहना है जब तक सरकार इनकी मांगे नहीं मानेगी वह काम पर वापस नहीं लौटेंगे। जबकि राजेपुर स्वास्थ्य केंद्र संचालक डॉक्टर आरिफ सिद्दीकी ने बताया कि जो केंद्र खुल रहे हैं और कर्मचारी वहां आ रहे हैं उन पर कार्रवाई नहीं होगी, परंतु जो नदारद है उनका वेतन काटा जाएगा व अन्य कार्यवाही सरकार के निर्देश के अनुसार की जा सकती है। स्वास्थ्य विभाग के संविदा कर्मचारियों के वेतन वृद्धि को लेकर चल रही हड़ताल के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में बीमार मरीज को स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। गर्भवती महिलाएं दूर दराज स्वास्थ्य केन्द्रों तक जाने के लिए मजबूर हैं। जबकि उनका टीकाकरण उनके गांव या आसपास के गांव में इन स्वास्थ्य कर्मियों की सेवाओं के चलते हो जाया करता था, परंतु अब हड़ताल का खामियाजा नन्हे मुन्ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है।

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