फर्रूखाबाद, समृद्धि न्यूज। भगवान विष्णु ने परशुराम अंश के रूप में उस भृगु कुल में अवतार लिया। जिस भृगु के पाद-प्रहार को अपने वक्ष:स्थल पर सहा। इसी भृगुवंश में उत्पन्न होने के कारण वे भार्गव कहलाए। भगवान परशुराम की जयंती के उपलक्ष्य में विशेष साक्षात्कार में ब्राह्मण समाज के लोगों ने बताया कि हमें बहुत ही गर्व है कि हम परशुराम के वंशज कहलाते हैं।
अधिवक्ता पीयूष दुबे ने बताया कि भगवान परशुराम अपना धनुष श्रीराम को नहीं देते तो रावण का वध न होता। परशुराम में शस्त्र व शास्त्र का अद्भुत समन्वय मिलता है। कुल मिलाकर देखा जाये तो जौनपुर के जमैथा में उनकी माता रेणुका, बाद में अखण्डो देवी का मंदिर आज भी मौजूद है। जहां लोग पूजा अर्चना करते हैं। हम उनकी जयंती 10 अपै्रल को धूमधाम से मनायेंगे।
अध्यापक व संस्कार भारती के सह विभाग संयोजक आदेश अवस्थी ने बताया कि भगवान परशुराम एक तपस्वी थे। उन्होंने कई बार असुरी शक्तियों का विनाश किया और वह पिता भक्त थे। पिता के कहने पर उन्होंने अपनी माता का सिर काट दिया। बाद में पिता के वरदान देने पर उन्होंने पुन: माता को जिंदा करने का वरदान मांगा। जिसे परशुराम के कहने पर पिता ने मां को पुन: जिंदा किया।
कनोडिया बालिका इंटर कालेज की प्रधानाचार्या सुमन त्रिपाठी ने बताया कि भगवान परशुराम शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने २१ बार पृथ्वी पर असुरी शक्तियों का विनाश किया। हम अपने आराध्य भगवान परशुराम की जयंती १० अपै्रल को धूमधाम से मनायेंगे और हवन पूजन करेगें।