होली पर भी सूना दिख रहा खोया बाजार, हलवाईयों की मौज

*पिछले वर्ष की अपेक्षा बिक्री घटी, दामों में भी कमी आयी
*खोये की आढ़तों पर सुबह होती रौनक, खुदरा बाजार धड़ाम

फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। कहने को होली का त्यौहार गुजियों की मिठास से पहचाना जाता है, लेकिन इस बार इन गुजियों की मिठास हलवाईयों की जरिए से घर-घर पहुंच रही है। पिछले वर्ष हल्का-फुल्का कोरोना होने के बावजूद भी ४०० रुपये प्रतिकिलो खोये की बिक्री हुई थी, लेकिन इस बार उसी खोये २८० रुपये तक में लोग खरीदने को तैयार नहीं है। इसका प्रमुख कारण घर में गुजियां बनाने में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला आलस और झंझट से मुक्ति के लिए रेडीमेड गुजियों की खरीददारी मालूम पड़ रही है। वहीं रही-सही कसर खोया बाजार में की गई तोडफ़ोड़ और सरकारी छापों ने पूरी कर दी। कुल मिलाकर कहे तो होली पर खोया बाजार ठंडा पड़ा हुआ है हलवाईयों की दुकानों पर गर्म कढ़ाई में होली की गुजियां तली जा रही है।
पुराने समय से चौक बाजार रेलवे रोड नुक्कड़ पर खोये का बाजार है। सुबह के समय यहां पर खोये की बिक्री होती है, सिर्फ होली पर ही नहीं खोया बाजार में बारहों महीने खोये की बिक्री का समय चलता है। थोड़े क्षेत्र में खोये की तमाम आढ़ते है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों से तैयार होकर आये खोये की बिक्री होती है। इन आढ़तों से हलवाईयों के यहां सीधे खोया चला जाता है। खोया बाजार में दुकान लगाने वाले खुदरा दुकानदारों की बिक्री इस कारण बहुत कम हो गई है। होली पर खोया बाजार की रौनक और बढ़ जाती है, लेकिन इस बार स्थितियां सामान्य दिखायी दे रही है। खोया विके्रता हरिओम ने बताया कि इस बार खोये की बिक्री काफी कम हुई है। हालांकि बाजार टूटने का खोये की बिक्री पर असर नहीं है। बचीकुची दुकानों पर लोग खोया लगाये हुए है। रेडीमेड गुजियां की मांग अधिक होने के कारण धंधा हलवाईयों के पास चला गया। खोया आढ़ती श्याम टंडन ने बताया कि होली पर भी सामान्य बिक्री है। खोये में मिलावट नहीं है। गांव से आने वाला खोया जस का तस विक्रय कर दिया जाता है। फिर भी खोया बाजार पर खाद्य विभाग की निगाहे तीखी रहती है। उन्होंने कहा कि त्यौहार जैसा माहौल नहीं दिखायी दे रहा है। खोया विक्रेता अजीत भदौरिया ने कहा कि होली को गुजियों का त्यौहार कहा जाता है। तरह-तरह की गुजियां पकवानों की तरह घरों पर महिलाएं बनाती थी। वर्तमान में समय के परिवर्तन के साथ-साथ गुजियां बनाने में महिलाओं की रुचि कम हो गयी। पूजा इत्यादि के लिए रेडीमेड गुजिया हलवाई बेंचने लगे। परिणाम स्वरुप होली पर होने वाली खोये की बिक्री का कोई खास क्रेज नहीं रह गया। फिर भी संस्कृत से जुड़े इस त्यौहार पर काम चलाने तक का खोया बिक ही जाता है। इसके अलावा खोया आढ़ती मोहन मिश्रा, कल्लू गुप्ता ने भी बाजार को सामान्य बताया। फिलहाल खोये का फुटकर मूल्य ३०० रुपया किलो चल रहा है। दिन के दिन बिक्री की उम्मीद लिये खोये के फुटकर विक्रेता आने दो दिनों के लिए काफी आशांवित दिखायी दे रहे हैं।

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