समृद्धि न्यूज़ अयोध्या।रामनगरी के प्रख्यात उदासीन संगत ऋषि आश्रम में परंपरानुसार गत वर्षो की भांति इस वर्ष भी सोमवार को समारोह पूर्वक गुरु पर्व महोत्सव मनाया गया।इस अवसर पर आश्रम के महंत डॉ भरत दास के निर्देशन में प्रातः काल से ही शुरू हुए पूजन अर्चन कार्यक्रम के क्रम में मंत्रोच्चार के बीच विधिवत तरीके से धर्म ध्वजा का पूजन अर्चन किया गया और आश्रम की दिव्यता की अलख और आकर्षक के केंद्र समाधिष्ट प्रख्यात सिद्ध महापुरुषों की आरती उतारी गई जिसके बाद विभन्न धार्मिक कार्यक्रम,सत्संग और विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। उदासीन आश्रम में गुरु पर्व महोत्सव के शुरुआती कार्यक्रम पर गौर करें तो इस कार्यक्रम की शुरुआत बीती एक अक्टूबर को श्रीमद् भागवत कथा के आयोजन के साथ ही हो गया था जिसे तकरीबन सप्ताह भर आश्रम के संतो द्वारा पूरी तन्मयता के साथ सुना गया और इसका समापन सात अक्टूबर को पूरे विधि विधान के साथ हो गया।इसी क्रम में बीती आठ अक्टूबर को श्री रामचरितमानस के अखंड पाठ की शुरुआत हुई।इसके समापन और पूर्णाहुति के बाद महंत डॉ भरत दास द्वारा परंपरागत तरीके से समारोह पूर्वक और पूरे हर्षोल्लास के साथ धर्म ध्वजा साहब का पूजन किया गया तथा मंदिर में समाधिष्ट सभी सिद्ध संतों का पूरे विधि विधान के साथ पूजन,अर्चन और माल्यार्पण कर उनकी महा आरती उतारी गई। महंत डॉ दास द्वारा शुरू किए गए इस पूजन के बाद बाहर से आए आश्रम के संतों ने भी मंदिर में समाधिष्ट अपने सिद्ध गुरुओं का पूजन अर्चन किया और उनकी महा आरती उतारी जिसके बाद अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए गए और संत महंतों के सम्मान की बात वृहद भंडारे का आयोजन किया गया।पूजन अर्चन के बाद आश्रम के महंत डॉ.भरत दास ने आश्रम की ऐतिहासिकता के बारे में बताया कि उदासीन आश्रम की स्थापना 17वीं शताब्दी में बाबा संगत बक्श द्वारा की गई थी,जो स्वभावत अत्यंत सिद्ध और तपस्वी महापुरुष थे,जिनकी समाधि इस आश्रम में आज भी स्थापित है।महंत डॉ दास बताते हैं कि उनकी समाधि के पास जाने से आज भी उनकी दिव्य अनुभूति का एहसास होता है।उन्होंने सनातन परंपरा की स्थापना की थी और उस समय से लेकर आज तक हम सभी उनके अनुयायियों द्वारा उसी परंपरा का निर्वाहन किया जा रहा हैं।आश्रम के नाम की ऐतिहासिकता से जुड़ा सवाल पूछने पर डॉ. दास ने बताया कि उदासीन का आशय है उद-ब्रह्मा-आसीन है,अर्थात जो ब्रह्म में निरंतर चिंतन करने वाला। उन्होंने कहा कि उदासीन परंपरा हमारी वैदिक सनातन परंपरा है और इसमें वेद परंपरा में चतुर्विद संप्रदाय और उनके आचार्य सनक,सनंदन व सनत कुमार हैं। उनके द्वारा प्रवृतित इस संप्रदाय का उद्देश्य जनसेवा,पंच देवों की उपासना,गौसेवा तथा धर्म और धर्मग्रंथों की रक्षा करना है।डॉ दास बताते हैं कि उदासीन एक अद्भुत परंपरा है,जो हमारे जगद्गुरु भगवान श्रीचंद्र द्वारा स्थापित और शुरू की गई है। उन्होंने बताया कि भगवान श्रीचंद्र सिखों के प्रथम गुरु नानक देव के सुपुत्र हैं और इसके साथ ही वे महातपस्वी और बड़े सिद्ध गुरुदेव हैं।उन्होंने बताया कि हमारी वैदिक व शास्त्रीय परंपरा कृतज्ञता की ही है और हमारे महापुरुषों ने वेद व शास्त्रों में ये जो पितृ-पक्ष पंद्रह दिन तक मनाया जाता है। इस दौरान हम लोग अपने गुरुओं, आचार्यों,माता-पिता व महापुरुषों के निमित्त इस पितृ-पक्ष यानी पंद्रह दिन के पखवाड़े में हम लोग शास्त्रसम्मत एवं विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।इस अवसर पर ध्वजा साहेब का पूजन किया जाता है।इस गुरु महापर्व महोत्स्व में आश्रम के अनुयायी,भक्त व श्रद्धालु आदि सभी जन बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।इस दौरान श्रीमद्भभागवत ज्ञान यज्ञ,श्रीरामचरित मानस अखंड पाठ,महापुरुषों-संतों द्वारा आशीष वचन,सत्संग एवं विशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है।