फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। नये कमरों में अब चीजें पुरानी कौन रखता है। परिन्दों के लिए प्यालों में पानी कौन रखता है, एक हम हैं जो सम्भाले हैं विरासत को, वरना सलीके से बुजुर्गों की निशानी कौन रखता है, ख्याल लावनी की यह पंक्तियां आधुनिक युग में बहुत सटीक बैठती हैं।
पारा दिन पर दिन ऊपर चढ़ता जा रहा है। ऐसे में मनुष्य के अलावा बेजुबान पशु पक्षी भी भीषण गर्मी में प्यास से व्याकुल होकर दम तोड़ रहे हैं। पुराने समय में लोग परिन्दों के लिए अपनी-अपनी छतों पर मिट्टी के वर्तनों में पानी रखते थे। जिसे पीकर परिन्दे अपनी प्यास बुझाते थे, लेकिन आधुनिक युग में सब बदल गया है। अब न तो कोई परिन्दों के लिए अपनी छतों पर पानी रख रहा है और न ही बुजुर्गों की निशानी को कोई संजोकर रख रहा है। पाश्चात्य संस्कृति में व्यक्ति इतना खो गया है, वह पिछला इतिहास ही भूलता जा रहा है। बच्चे संस्कारविहीन हो रहे हैं। पेड़ों का अंधाधुंध कटान हो रहा है। जिससे पंक्षियों को रहने में काफी दिक्कतें हो रही हैं। पहले मकान कच्चे बनते थे, जिसमें पक्षी अपना घोसला बनाते थे, लेकिन अब पक्के मकानों में पंक्षी अपना घोषणा कहां से बनायें। लोग अब छतों पर पानी भी नहीं रखते हैं। जलाशय, पोखर सब सूखे पड़े हैं। जिससे पानी के अभाव में तड़प-तड़प कर परिन्दे दम तोड़ रहेे हैं। यदि लोग परिन्दों को बचाना चाहते हैं, तो अपने-अपने घरों की छतों पर मिट्टी के घड़े अथवा सीमेंट की नांद आदि में पानी रखकर हम परिन्दों की प्यास बुझा सकते हैं।