रसशास्त्र के बिना अधूरा है आयुर्वेद: डा0 राजीवनारायण बिलास.

*पारा है आयुर्वेद चिकित्सा का अभिन्न अंग: डा0 मनदीप जायसवाल
*आयुर्वेद चिकित्सा का आधार है रस शास्त्र: प्राचार्य

फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूजमेजर एस0डी0 सिंह पीजी आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज एवं हॉस्पिटल में सम्पन्न हुए आठवें राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए लखनऊ राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज के सह आचार्य डॉ0 राजीवनारायण बिलास ने कहा कि रसशास्त्र के बिना आयुर्वेद अधूरा है। रसशास्त्र के बिना आयुर्वेद को पूर्ण बिलकुल नहीं कहा जा सकता।
महाविद्यालय के रसशास्त्र विभाग द्वारा सेमिनार हॉल में आयोजित आठवें राष्ट्रीय सेमिनार रसोद्भव में विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि रसशास्त्र की परिकल्पना केवल चिकित्सा के उपयोग हेतु नहीं की गई, बल्कि पारद की सहायता से मोक्ष प्राप्ति हेतु की गई है। पारद को भगवान शिव से उत्पन्न माना गया है और इसमें समस्त रोगो का नाश करने की शक्ति निहित है। उन्होंने कहा कि पारद के अतिरिक्त सोना, चांदी, हीरा, मोती, नीलम, पन्ना आदि द्रव्यों का भी चिकित्सा में प्रयोग के बारे में रसशास्त्र में ही बताया गया है। डॉ0 बिलास ने यह भी कहा कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान आज चिकित्सा के लिए सोना चांदी आदि का प्रयोग कर रहा है, लेकिन इन का प्रयोग हजारों साल पहले ही रसशास्त्र में लिखा जा चुका है।
बरेली के एसआरएम. राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय से आये सह आचार्य डा0. मनदीप जायसवाल ने कहा कि किस तरह पारद को चिकित्सा में प्रयोग किया जा सकता है। पारद का एकल प्रयोग निषिद्ध है। इसे शरीर में अवशोषित होने लायक बनाने हेतु कई संस्कार किये जाते हैं, जिसके बाद ही यह चिकित्सा हेतु प्रयोग में लाया जाता है। यदि पारद एवं अन्य रस औषधियों का प्रयोग शोधन मारण आदि संस्कारों को किए बिना किया जाये तो यह निश्चित ही हानि कारक प्रभाव उत्पन्न करती हैं, जिनका विवरण शास्त्रों में पूर्व में किया जा चुका है, और उन दुष्प्रभावों की चिकित्सा भी वर्णित की गई है। उन्होंने कहा कि रस औषधियों के बिना चिकित्सा अधूरी है।
महाविद्यालय की प्राचार्य डा0 जॉली सक्सेना ने कहा कि छात्र-छात्राओं के सर्वांगीण विकास हेतु किताबी ज्ञान ही पर्याप्त नहीं होता है। सेमिनार के माध्यम से आयुर्वेदाचार्यों द्वारा अपने अनुभव से साझा की गई ज्ञान की बातों का भी हमारे चिकित्सकीय अध्ययन में बहुत महत्व होता है। महाविद्यालय हर वर्ष राष्ट्रीय स्तर का सेमिनार आयोजित करने के लिए प्रतिबद्ध है। महाविद्यालय के चेयरमैन डा0 जितेन्द्र सिंह तथा डायरेक्टर डॉ0 अनीता रंजन को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए डॉ0 सक्सेना ने कहा कि प्रबन्ध तंत्र की प्रेरणा से ही इस प्रकार के आयोजनो ंको सम्पन्न करा पाना संभव हो पा रहा है। इन संगोष्ठियों का सभी विद्यार्थियों को लाभ उठाना चाहिए। महाविद्यालय के डीन डॉ0 सुनील कुमार गुप्ता ने प्रस्तावित आगामी अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनार के विषय में प्रकाश डाला। कार्यक्रम की संयोजक डॉ0 इरिना एस चन्द्रन ने सभी आगंतुकों एवं विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए सेमिनार से ज्ञान अर्जित कर इसका सदुपयोग करने की अपील की।
इससे पूर्व भगवान धन्वन्तरि के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्जवल कर मुख्य अतिथि डॉ0 राजीव नारायण बिलास एवं डा0 मनदीप जायसवाल ने सेमिनार का शुभारंभ किया। सेमिनार आयोजन समिति के सचिव डा0. शिवओम दीक्षित ने अपने उद्बोधन में रस शास्त्र के महत्व पर प्रकाश डाला तथा अन्तमें सभी अतिथियों एवं विद्यार्थियों को सेमिनार के सफल आयोजन के लिए बधाई दी। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 अरुण कुमार पाण्डेय ने किया। सेमिनार को सफल बनाने में डॉ0 अंकुर सक्सेना तथा प्रशासनिक अधिकारी अनूप कुमार ने मुख्य भूमिका निभाई। सेमिनार को डॉ0 अंजना दीक्षित, डॉ0 शीलू गुप्ता, डॉ0 रीता सिंह, डॉ0 विजय मोहनगुप्ता, डॉ0 देबाशीष बिस्वाल, डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव, डॉ0 निरंजन एस., डॉ0 रविशंकर मौर्य, डा0. डी0के0 मिश्रा, डॉ0 उर्मिला मौर्या, डॉ0 संकल्प सिंह, डॉ0 पंकज कुमार शुक्ला, डॉ0 इतिश्री दास, डॉ0 विकास बाबू, डॉ0 लक्ष्मी देवी चौहान, डॉ0 श्वेता यादव, डॉ0 भारती पांचाल, डा0 मुकेश विश्वकर्मा, डा0 आनन्द बाजपेयी, डॉ0 वेदप्रकाश ने भी सम्बोधित किया। इस अवसर पर लेखाधिकारी राहुल वर्मा, एच.आर.एम. निधि तिवारी, एडमिन कोआर्डिनेटर प्रवीन कुमार, जितेन्द्र सक्सेना, प्रिंस गुप्ता, चन्द्रभान आदिका सहयोग सराहनीय रहा।

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