मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की विधानसभा में एक विधेयक पेश किया था. विधेयक नजूल की ज़मीन से जुड़ा हुआ था, जिसमें योगी सरकार का प्रस्ताव था कि नजूल की ज़मीनों पर सरकार का कब्जा होगा और सरकार उसे सार्वजनिक काम में इस्तेमाल करेगी. इसको लेकर विधानसभा में बीजेपी ही दो धड़ों में बंटी दिखी. बीजेपी के विधायक सिद्धार्थ नाथ सिंह और हर्षवर्धन वाजपेयी ने अपनी ही सरकार के विधेयक का विरोध कर दिया. लेकिन बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी के कड़े विरोध के चलते विधान परिषद में यह लटक गया है. विधान परिषद के सभापति मानवेंद्र सिंह ने विधेयक को प्रवर समिति के पास भेजने की मंजूरी दे दी है. इस विधेयक ने सूबे के सियासी तापमान को बढ़ा दिया है. विधेयक के विरोध में विपक्षी दल की नहीं बल्कि सत्तापक्ष की तरफ से भी आवाज उठी.
पार्टी के अंदर उठाए जा रहे योगी के ऊपर सवाल
अब भले ही बीजेपी के नेता और सहयोगी इस बिल की खामियां गिनाएं, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी चाहे जो वजह बताएं, लेकिन सवाल तो फिर से मौजूं हो ही गया है कि क्या अब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का इकबाल घट गया है. क्योंकि अभी तक यही देखने में आया है कि लोकसभा चुनाव 2024 से पहले तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जो चाहा है, वही हुआ है. लेकिन अब योगी आदित्यनाथ पर लगातार सवाल उठ रहे हैं और ये सवाल पार्टी के अंदर से ही उठ रहे हैं, जिसकी अगुवाई उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य कर रहे हैं. पिछले दिनों केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि संगठन सरकार से बड़ा होता है. और ये बयान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में दिया गया था. तब इस बयान को लेकर संगठन बनाम सरकार की लड़ाई पर खूब बातें हुई थीं, लेकिन अब तो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष ने ही सरकार के विधेयक को रोककर केशव प्रसाद मौर्य की उस बात को साबित कर दिया है कि बीजेपी में तो संगठन सरकार से बड़ा है.
BJP के कई सहयोगी भी हुए खिलाफ
बीजेपी विधायक हर्षवर्धन वाजपेयी, सिद्धार्थनाथ सिंह के साथ सहयोगी निषाद पार्टी और जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के विधायक भी विरोध में आ गए. बीजेपी विधायकों के विरोध के बावजूद योगी सरकार नजूल बिल को विधानसभा से पास कराने में कामयाब रही, लेकिन विधान परिषद में पेश होने से पहले सियासी नफा-नुकसान का आकलन कर लिया. इसके चलते ही विधान परिषद में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने बिल का विरोध कर दिया और उसे पास नहीं होने दिया. योगी सरकार के नजूल भूमि संबंधी बिल का सबसे अधिक विरोध प्रयागराज क्षेत्र के बीजेपी विधायकों ने किया है. प्रयागराज के पश्चिमी सीट से बीजेपी विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह हों या फिर शहर उत्तरी सीट के विधायक हर्षवर्धन दोनों ने पुरजोर तरीके से बिल का विरोध किया. इसके अलावा रघुराज प्रताप सिंह भले ही प्रतापगढ़ के कुंडा क्षेत्र से विधायक हों, लेकिन उनका प्रभाव प्रयागराज तक माना जाता है. इसी तरह कांग्रेस विधायक आरधना मिश्रा भी प्रतापगढ़ के रामपुर खास से विधायक हैं, लेकिन वह भी प्रयागराज की सियासत में पूरा दखल रखती हैं. सवाल उठता है कि प्रयागराज और उससे लगे क्षेत्र के विधायक ही नजूल भूमि बिल पर सबसे ज्यादा मुखर क्यों दिखे. इसे समझने से पहले यह जानना जरूरी हो जाता है कि नजूल की भूमि कौन सी होती है और उसे लेकर बीजेपी के विधायकों को क्यों विरोध करना पड़ा. इतना ही नहीं विधानसभा से पास होने के बाद विधान परिषद में भूपेंद्र चौधरी को प्रवर सामित भेजने की मांग क्यों उठानी पड़ी.