छठ महापर्व का दूसरा दिन आज

  1. अरवा चावल, चने की दाल, कद्दू समेत कई व्यंजनों के भोग के बाद शुरू होगा 36 घंटे का निर्जला व्रत
  2. अस्ताचलगामी और उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगे व्रती

महापर्व के विशेष मुहूर्त

  • खरना पूजा- शाम 5 बजकर 29 मिनट से 7 बजकर 48 मिनट तक
  • अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का समय- शाम 5 बजकर 5 मिनट तक
  • उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का समय- 6 बजकर 2 मिनट से पहले

छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. छठ में पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखा जाता है. यह पर्व उत्तर प्रदेश और बिहार के पूर्वांचल क्षेत्र से लेकर पूरी दुनियां में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष के षष्ठी को मनाये जाने वाले इस हिंदू पर्व में भगवान सूर्य और छठी मैया की विधि-पूर्वक पूजा होती है. जिसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है और सप्तमी के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पूरी होती है. छठ महाव्रत के दौरान नहाय खाय और खरना से लेकर सूर्य को अर्घ्य देने तक का विशेष महत्व है. जिसमें खरना आज मनाया जाएगा और कल शाम को सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाएगा. मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को हर मनोकामना पूर्ण हो जाती है और घर-परिवार में खुशहाली बनी रहती है. मुख्य रूप से छठ व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना से रखती हैं. वहीं ये व्रत संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए भी खास माना जाता है. खरना के दिन छठ महापर्व का व्रत करने वाले लोग पूरे दिन उपवास पर रहते हैं और शाम को स्नान कर विधिवत छठी मैया की पूजा करती हैं. खरना की पूजा के बाद बखीर और गेहूं के आटे से बनी रोटी खाकर व्रत तोड़ते हैं. इसे भी महाप्रसाद में शामिल किया गया है. इसे व्रत करने वाले व्यक्ति के खाने के बाद घर-परिवार के बाकी सदस्य खात तौर पर घर के बच्चों को खिलाया जाता है. क्योंकि मान्यता है कि ये व्रत संतान के लिए किया जाता है. छठ पूजा का प्रसाद खरना के दिन नहीं बनता है. इसकी तैयारी भले ही पहले से कर ली जाए लेकिन छठ के पकवान और ठेकुआ आदी पहले अर्घ्य के दिन सुबह के समय में तैयार किया जाता है. इसे पकाने या बनाने की जिम्मेदारी भी व्रत करने वाले व्यक्ति या महिला पर होता है. यानी छठ महापर्व के लिए प्रसाद व्रत करने वाला व्यक्ति ही बनाता है. प्रसाद को बनाने में जरूर घर परिवार के लोग सहयोग करते हैं. प्रसाद बनाने के लिए अनाज को पहले से ही साफ करके उसे धोकर सुखा लिया जाता है. इसके बाद उसे पिसवाकर इस्तेमाल में लाया जाता है. पूजा के लिए मिट्टी के नए चूल्हे में पीतल के बर्तन में प्रसाद बनाया जाता है. साथ ही पूजा में चढ़ाए जाने वाली हर वस्तु अखंडित होनी चाहिए, चाहे वह फूल हो या फल. पूरा पर्व पवित्रता से जुड़ा हुआ है, ऐसे में साफ-सफाई का पूरे पर्व के दौरान खास तौर पर ख्याल रखा जाता है.

  • कार्तिक शुक्ल पंचमी (छह नवंबर) बुधवार को पूर्वाषाढ़ नक्षत्र व सुकर्मा योग में छठ महापर्व के दूसरे दिन व्रती खरना करेंगी। खरना में ईख के कच्चे रस या गुड़, दूध और अरवा चावल से महाप्रसाद खीर बनाया जाएगा।
  • पर्व के तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी सात नवंबर गुरुवार को धृति योग, रवियोग व जयद योग में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। मान्यता है कि अर्घ्य देने से मानसिक शांति, उन्नति व प्रगति होती है।
  • आठ नवंबर शुक्रवार को कार्तिक शुक्ल सप्तमी उत्तराषाढ़ नक्षत्र के साथ आनंद योग, सर्वार्थ सिद्धि योग व रवियोग के सुयोग में व्रती गंगा घाट, तालाब, पार्क व घरों की छत पर बने कृत्रिम घाटों पर उदीयमान सूर्य को दूध तथा जल से अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगे। इसके साथ ही 36 घंटे से जारी निर्जला उपवास का पारण हो जाएगा।

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