पांचाल घाट पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, उत्साह से मना छठ पूजा का पर्व
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। छठ महापर्व के तीसरे दिन पांचाल घाट स्थित गंगा तट पर मेजर एसडी सिंह आयुर्वेदिक पी0जी0 कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल की डायरेक्टर डा0 अनीता रंजन ने सभी के साथ मिलकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। पूजा में मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन डा0 जितेन्द्र सिंह यादव ने सहयोग किया।
बताते चले कि छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन नहाय खाय से होती है। पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और उगते सूर्य सप्तमी को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होता है। इस चार दिवसीय त्योहार में सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करना बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इस व्रत को कठोर नियमों के अनुसार 36 घंटे तक रखा जाता है। आस्था का महापर्व छठ खासतौर से दिल्ली बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। चार दिवसीय पर्व सूर्यदेव और छठी मैया को समर्पित होता है। छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्व माना गया है। 7 नवंबर को छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्यदेव को संध्या अर्घ्य दिया गया। मान्यताओं के अनुसार छठ के तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद शाम में व्रती महिलाएं व्रत कथा का पाठ भी करती हैं। कहा जाता है कि संध्या अर्घ्य देने के बाद व्रती महिलाओं को इस व्रत कथा का पाठ करना बेहद जरूरी है। छठ का व्रत संतान की लंबी आयु और समृद्धि के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से परिवार में सदैव खुशहाली बनी रहती है। वहीं अगर जिनकी गोद सूनी और वे छठ का व्रत करती हैं तो छठी मईया की कृपा से जल्द उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। बता दें कि छठ पूजा में डाला का विशेष महत्व होता है। डाला का अर्थ है बांस की डलिया। इस डाला को कोई पुरुष या महिला अपने सिर पर रखकर तालाब या नदी किनारे बने छठ घाट तक ले जाता है। इस डाला में छठ पूजा से जुड़ी सभी पूजा सामग्री रहती है। इस महापर्व में बिहार की पूर्णिया लोकसभा के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की माता जी भी मौजदू रही। इस अवसर पर मुख्य रुप से डॉ0 जितेंद्र सिंह यादव, डॉ0 अनीता रंजन, डा0 नीतूश्री, ऊषा, डॉ0 मुकेश विश्वकर्मा, पिंकी, प्रियंका, गीता, रेखा, साधना, निर्मला आदि ने भी सहयोग किया।
धर्म ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में माता कुंती के पुत्र दानवीर कर्ण ने भी सूर्यदेव को जल अर्घ्य दिया था। कर्ण को माता कुंती के अलावा, सूर्यदेव का पुत्र भी माना जाता है। सूर्य देव की दानवीर कर्ण पर विशेष कृपा थी। ऐसा कहा जाता है कि कर्ण रोजाना सुबह उठकर घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बन गए थे। इसके अलावा छठ पर्व से जुड़ी एक और कथा का पुराणों में उल्लेख मिलता है। इस कथा के अनुसार, महाभारत में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए के खेल में हार बैठे थे, तब द्रौपदी ने भी छठ व्रत रखा था। द्रौपदी के व्रत और पूजा से प्रसन्न होकर षष्ठी मैया ने पांडवों को उनका राज्य वापस लौटा दिया था।