‘एक देश, एक चुनाव’ प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी, जल्द संसद में पेश हो सकता है बिल

‘एक देश एक चुनाव’ बिल को कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है. सूत्रों के मुताबिक इसी सत्र में यह बिल पेश हो सकता है. बिल को विस्तृत चर्चा के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजा जा सकता है. कैबिनेट एक देश एक चुनाव पर बनी रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट को स्वीकार कर चुकी है. सरकार चाहती है कि इस बिल पर आम राय बने. सभी हितधारकों से विस्तृत चर्चा हो.

जेपीसी सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों से चर्चा करेगी. इसके साथ ही सभी राज्य विधानसभाओं के स्पीकरों को भी बुलाया जा सकता है.देश भर के प्रबुद्ध लोगों के साथ ही आम लोगों की राय भी ली जाएगी. एक देश एक चुनाव के फायदों, उसे करने के तरीकों पर विस्तार से बात होगी. सरकार को उम्मीद है कि इस बिल पर आम राय बनेगी. मोदी सरकार इस बिल को लेकर लगातार सक्रिय रही है. सरकार ने सितंबर 2023 में इस महत्वाकांक्षी योजना पर आगे बढ़ने के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक समिति का गठन किया था. कोविंद समिति ने अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनाव की घोषणा से ठीक पहले मार्च में सरकार को अपनी सिफारिश सौंपी थी. केंद्र सरकार ने कुछ समय पहले समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था. रिपोर्ट में 2 चरणों में चुनाव कराने की सिफारिश की गई थी. समिति ने पहले चरण के तहत लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की सिफारिश की है. जबकि दूसरे चरण में स्थानीय निकाय के लिए चुनाव कराए जाने की सिफारिश की गई है.

18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट

191 दिनों तक विशेषज्ञों और स्टेकहोल्डर्स से विचार के बाद 18 हजार 626 पन्नों की रिपोर्ट दी गई. इसमें सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाकर 2029 तक करने का सुझाव दिया गया है, ताकि लोकसभा के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराए जा सकें. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नो कॉन्फिडेंस मोशन या हंग असेंबली की स्थिति में 5 साल में से बचे समय के लिए नए चुनाव कराए जा सकते हैं. पहले चरण में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं. वहीं, दूसरे चरण में 100 दिनों के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव हो सकते हैं. इन चुनावों के लिए चुनाव आयोग, लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के लिए वोटर लिस्ट तैयार कर सकता है. इसके अलावा सुरक्षा बलों के साथ प्रशासनिक अफसरों, कर्मचारियों और मशीन के लिए एडवांस में योजना बनाने की सिफारिश की गई है.

कोविंद समिति में कुल 8 सदस्य

इस कमेटी में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत आठ सदस्य थे. कोविंद के अलावा इसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, डीपीए नेता नेता गुलाब नबी आजाद, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे शामिल थे. इनके अलावा 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ. सुभाष कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी भी इस कमेटी का हिस्सा थे.

क्या है एक देश एक चुनाव की बहस?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर एक देश एक चुनाव का जिक्र किया था। तब से अब तक कई मौकों पर भाजपा की ओर एक देश एक चुनाव की बात की जाती रही है। ये विचार इस पर आधारित है कि देश में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हों। अभी लोकसभा यानी आम चुनाव और विधानसभा चुनाव पांच साल के अंतराल में होते हैं। इसकी व्यवस्था भारतीय संविधान में की गई है। अलग-अलग राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल अलग-अलग समय पर पूरा होता है, उसी के हिसाब से उस राज्य में विधानसभा चुनाव होते हैं।  हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होते हैं। इनमें अरुणाचल प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम जैसे राज्य शामिल हैं। वहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम जैसे राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव से ऐन पहले हुए तो लोकसभा चुनाव खत्म होने के छह महीने के भीतर हरियाणा, जम्मू कश्मीर में चुनाव हुए। इसके बाद महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव कराए गए। अब दिल्ली में चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है।

कोविंद समिति ने यह भी कहा

  1. 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए हैं।
  2. 1999 में विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट में पांच वर्षों में एक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए चुनाव का सुझाव।
  3. 2015 में संसदीय समिति की 79वीं रिपोर्ट में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के तरीके सुझाए गए।
  4. राम नाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति ने राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों सहित विभिन्न हितधारकों से व्यापक परामर्श किया।
  5. रिपोर्ट ऑनलाइन उपलब्ध है: https://onoe.gov.in
  6. व्यापक फीडबैक से पता चला है कि देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए व्यापक समर्थन है।

    मोदी सरकार एक देश एक चुनाव क्यों जरूरी मानती है

    1. एक देश एक चुनाव से जनता को बार-बार के चुनाव से मुक्ति मिलेगी।
    2. हर बार चुनाव कराने पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, जो कि कम हो सकते हैं।
    3. यह कॉन्सेप्ट देश में राजनीतिक स्थिरता लाने में अहम रोल निभा सकता है।
    4. इलेक्शन की वजह से बार बार नीतियों में बदलाव की चुनौती कम होगी।
    5. सरकारें बार-बार चुनावी मोड में जाने की बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी।
    6. प्रशासन को भी इसका फायदा मिलेगा, गवर्नेंस पर जोर बढ़ेगा।
    7. पॉलिसी पैरालिसिस जैसी स्थिति से छुटकारा मिलेगा। अधिकारियों का समय और एनर्जी बचेगी।
    8. सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी।

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