मनाया गया ऋषि दयानंद सरस्वती 201वां जन्मोत्सव
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। आर्य प्रतिनिधि सभा के तत्वावधान में मेला श्री रामनगरिया में चल रहे वैदिक क्षेत्र में चरित्र निर्माण शिविर में महायज्ञ की पूर्णाहुति की गयी, साथ ही ऋषि दयानन्द का 201वाँ जन्मोत्सव सन्त सम्मेलन के साथ धूमधाम से मनाया गया। आचार्य चन्द्रदेव शास्त्री ने बताया कि आज ऋषि दयानन्द सरस्वती की जन्म जयन्ती है। ऋषि दयानन्द का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात की धरती टंकारा में हुआ था। ऋषि दयानन्द दो उद्देश्यों को लेकर घर से निकले थे, एक सच्चे शिव की खोज, दूसरा मृत्यु पर विजय प्राप्त करने के लिए। महर्षि दयानन्द सरस्वती इन्हीं दो उद्देश्यों को लेकर गुरुवर विरजानन्द दंडी के पास मथुरा पहुंचे। आचार्य ने कहा कि समस्त दुखों का मूल कारण अविद्या है, संसार के लोग अविद्यान्धकार को दूरकर दुखों से बच जाएं, इसी उद्देश्य को लेकर ऋषि दयानन्द ने नारा दिया- वेदों की ओर लौटो। इतना ही नहीं भारतवर्ष की आजादी के लिए सर्वप्रथम स्वराज्य का उद्घोष ऋषि दयानन्द ने ही किया था। अंग्रेजों के खिलाफ शंखनाद करते हुए ऋषि दयानन्द ने कहा कि कोई कितना ही करे, परन्तु जो स्वदेशीय राज्य होता है वह सर्वोपरि उत्तम होता है। प्रजा पर माता पिता के समान कृपा, दया और न्याय के साथ भी विदेशियों का राज्य पूर्ण सुखदायक नहीं हो सकता। ऋषि दयानन्द के जन्मोत्सव परए सन्त सम्मेलन में आए हुए सभी संतों ने एक साथ महर्षि दयानन्द सरस्वती एवं आर्य समाज के कार्यों की भूरि. भूरि प्रशंसा की। राजस्थान से आए महन्त स्वामी सोमवारपुरी महाराज ने कहा कि जैसे प्रयागराज में गंगा, यमुना, सरस्वती इन तीनों का संगम है वैसे ही मेला श्रीरामनगरिया में वैदिक क्षेत्र, चरित्र निर्माण शिविर में आज तीन का संगम है। स्वामी महेन्द्रानंद ने बताया कि वेद ईश्वरीय वाणी है। वेद से जो जुड़ जाता है वो वेदना से बच जाता है। सन्त उसे कहते हैं जो स्वयं कष्ट सहकर भी दूसरों को सुख प्रदान करता है। सन्तों का जीवन परोपकार के लिए होता है, इसीलिए सन्त समाज पूजनीय होता है। कु0 उदिता आर्या ने कहा कि नारी जाति पर महर्षि दयानन्द सरस्वती के अनेकों उपकार हैं। ऋषि दयानन्द नहीं होते तो नारी जाति को वेद पढऩे का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। संचालन आचार्य हरिओम शास्त्री ने किया। वैदिक क्षेत्र में आये हुए सभी साधु संतों एवं कार्यकर्ताओं का शॉल एवं शील्ड देकर सम्मान किया गया। कार्यक्रम में सोमवारपुरी, महंत अरविंद गिरी, लखनपुरी व शिशुपाल आर्य, अजीत आर्य, संजय, उत्कर्ष, रत्नेश द्विवेदी, उपासना कटियार आदि उपस्थित रहे।
वैदिक क्षेत्र में संत सम्मेलन का हुआ आयोजन
