गंभीर बीमारी से जंग हारीं बिहार कोकिला, छठी मईया से शुरू छठ पर ही खत्म

शारदा सिन्हा… ये नाम मन में आते ही दूसरे पल छठ के गीत अपने आप ही याद आने लगते हैं. छठ के गीतों को बिहार की इस बेटी ने कुछ ऐसा गाया कि छठ का पर्व इनके गानों के बिना अधूरा माने जाने लगा. ए करेलु छठ बरतिया से झांके झुके हो या केलवा के पात पर उगेलन सुरुज मल झांके झुके. या फिर कांचे ही बांस के बहंगिया… शारदा सिन्हा के छठ पर गाए हुए ये गीत अजर-अमर हो चुके हैं..

देश की सबसे मशहूर लोकगायिक शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रहीं। लेकिन, उनकी आवाज हमेशा जिंदा रहेंगी। दिवाली से छठ महापर्व तक उनकी ही गीत हर घर, गली और छठ घाटों पर गूंजतीं रहती हैं। मंगलवार देर रात दिल्ली एम्स में उन्होंने अंतिम सांस ली तो यूपी-बिहार ही नहीं पूरे देश में शोक की लहर दौर पड़ी। महज 72 साल की उम्र में ही उनका जाना किसी बड़े सदमे से कम नहीं है। उनके बेटे अंशुमान सिन्हा की मानें बिहार कोकिला मल्टीपल मायलोमा जैसी गंभीर बीमारी से पीड़ित थीं। यह कैंसर का एक प्रकार हैं। 2017 से ही वह इस बीमारी से जूझ रही थीं। लेकिन, अपनी बीमारी को सार्वजनिक नहीं किया। हमेशा लोगों के बीच हंसते हुए अपनी आवाज देती रहीं।

पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित

स्वर कोकिला कहलाने वाली शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रही. दिल्ली के एम्स में मंगलवार की रात को उनका निधन हो गया. पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा को छठी मईया ने छठ पर्व के दौरान ही अपने पास बुला लिया. शारदा सिन्हा बिहार की शान थी. मैथिली और भोजपूरी संगीत में उनका योगदान कभी नहीं भूला जा सकता है. शारदा सिन्हा अब हमारे बीच नहीं रही लेकिन छठ के गीतों को जब भी गुनगुनाया जाएगा बिहार की इस बेटी का नाम आता रहेगा. यूं कहे कि छठ जैसे महान पर्व शारदा सिन्हा के बिना अधूरा सा लगेगा.

आंतरिक लड़ाई लड़ने में कमजोर हो गईं
अंशुमान सिन्हा के अनुसार, 2017 से शारदा सिन्हा मल्टीपल मायलोमा से लड़ रही थीं। हम परिवार के लोग इस बात को जानते हैं। उनकी इच्छा थी कि मेरी व्यक्तिगत पीड़ा को सार्वजनिक नहीं की जाए। उन्हें क्या तकलीफ है, इस बात की व्याख्या करके काम करना, उन्हें पसंद नहीं। पिताजी के बाद उनका मनोबल टूट गया। उन्हें बड़ा झटका लगा। वह पूरी तरह से टूट गईं। इस कारण वह आंतरिक लड़ाई लड़ने में कमजोर हो गईं। पिताजी के श्राद्ध खत्म होने के ठीक बाद हमलोग उनके स्वास्थ्य की रूटीन जांच के लिए दिल्ली आए। इसी दौरान उनकी बीमारी में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर उन्हें एम्स में भर्ती करवाया गया। कुछ दिन स्थिति ऐसी हुई अस्पताल में जंग लड़ते-लड़ते उनकी सांसें थम गईं।

50 साल पहले गाया पहला गाना

शारदा सिन्हा ने करीब 50 साल पहले यानी साल 1974 में पहला भोजपूरी गाना गाया था. लेकिन इसके बाद उनका संघर्ष जारी रहा. फिर साल 1978 में उन्होंने छठ गीत ‘उग हो सुरुज देव’ गाया. इस गाने ने रिकॉर्ड बनाया और यही से शारदा सिन्हा और छठ पर्व एक दूसरे के पूरक हो गए. करीब 46 साल पहले गाए इस गाने को आज भी छठ घाटों पर सुना जा सकता है. इसके बाद सन 1989 में शारदा सिन्हा ने बॉलीवुड में कदम रखा और फिल्म मैने प्यार किया के लिए कहे तोसे सजना गाना गाया.

संगीत जगत के अपूरणीय क्षति

शारदा सिन्हा के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक ने शोक व्यक्त किया. पीएम मोदी ने कहा कि मैथिली और भोजपुरी के लोकगीत शारदा सिन्हा की आवाज में रिकॉर्ड किए गए, जो पिछले कई दशकों से बेहद लोकप्रिय रहे हैं. उनका जाना संगीत जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. 72 साल की शारदा ने मैथिली, भोजपूरी के अलावा हिन्दी फिल्मों में भी गाने गाए हैं. गैंग्स ऑफ वासेपुर का तार बिजली से पतले हमारे पिया हो या फिर हम आपके हैं कौन का बाबूल, शारदा सिन्हा ने जब मैने प्यार किया फिल्म में कहे तोसे सजना गाया. तब से वो रातों रात सुर्खियों में आ गई. उन्होंने दुनिया को दिखाया कि वो हर तरह के गाने गा सकती हैं.

 

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