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‘जय जगन्नाथ’ के जयकारों के साथ रथ यात्रा में उमड़ा भक्तों का सैलाब

पुरी (ओडिशा) : भगवान जगन्नाथ की वार्षिक रथ यात्रा पर ओडिशा के पुरी में जनसैलाब उमड़ पड़ा है. देश भर से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचे हैं और भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र की रथ यात्रा के उत्सव में शामिल हो रहे हैं. रविवार दोपहर को हजारों लोगों ने पुरी के 12वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर से विशाल रथों को खींचकर करीब 2.5 किलोमीटर दूर गुंडिचा मंदिर की ओर बढ़ाया. इस अवसर पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तीनों रथों की ‘परिक्रमा’ की और देवताओं के सामने माथा टेका. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रथ यात्रा के अवसर पर देशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं. राष्ट्रपति ने शुभकामना देते हुए कहा कि भगवान जगन्नाथ की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा के अवसर पर वह सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं देती हैं. आज देश-दुनिया के अनगिनत जगन्नाथ-प्रेमी रथ पर विराजमान तीनों भगवत्स्वरूपों के दर्शन हेतु उत्साह-पूर्वक प्रतीक्षा कर रहे हैं. इस महापर्व के अवसर पर महाप्रभु श्री जगन्नाथ से वह सभी के सुख, शांति और समृद्धि हेतु प्रार्थना करती हैं. जय जगन्नाथ!

राष्ट्रपति, ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने मुख्य जगन्नाथ रथ को जोड़ने वाली रस्सियों को खींचकर प्रतीकात्मक रूप से इस यात्रा की शुरुआत की. विपक्ष के नेता नवीन पटनायक ने भी भाई-बहन के देवताओं के दर्शन किए. हजारों लोगों ने भगवान बलभद्र के लगभग 45 फीट ऊंचे लकड़ी के रथ को खींचा. रथ उत्सव के नाम से भी मशहूर यह यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र अपनी मौसी देवी गुंडिचा देवी के मंदिर तक जाते हैं. यह रथयात्रा आठ दिनों के बाद उनकी वापसी के साथ समाप्त होती है. इसे उल्टा रथ के नाम से जाना जाता है. यात्रा से पहले रथों को जगन्नाथ मंदिर के सिंह द्वार से उन्हें गुंडिचा मंदिर ले जाया जाएगा, जहां रथ एक सप्ताह तक रहेंगे. रथयात्रा के मद्देनजर बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हुए हैं और विधिवत तरीके से पूजा-पाठ और अनुष्ठान का आयोजन किया गया है.

पीएम मोदी ने रथयात्रा पर दी शुभकामनाएं

पीएम नरेंद्र मोदी ने रथयात्रा पर शुभकामनाएं दी हैं. उन्होंने लिखा पवित्र रथ यात्रा के शुभारंभ पर बधाई. हम महाप्रभु जगन्नाथ को नमन करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनका आशीर्वाद हम पर सदैव बना रहे.

जगन्नाथ रथ यात्रा रविवार से शुरू हो गई है. हर साल इस यात्रा का आयोजन आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को किया जाता है. ओडिशा के पुरी में आयोजित की जाने वाली इस यात्रा में लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं. बता दें कि इस दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ-साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा का भी एक-एक रथ निकलता है और सभी रथों की अपनी अलग खासियत है. साथ ही इन्हें बेहद ध्यानपूर्वक तैयार किया जाता है. तो चलिए आपको बताते हैं कि इन रथ की खासियत क्या है.

  1. भगवान जगन्नाथ के 45.6 फीट ऊंचे नंदीघोष रथ के निर्माण के लिए अलग-अलग तरह की लकड़ी के कम से कम 742 लट्ठों का इस्तेमाल किया गया है. भगवान बलराम के 45 फीट ऊंचे तालध्वज रथ के लिए 731 लट्ठों का इस्तेमाल किया गया है और देवी सुभद्रा के 44.6 फीट ऊंचे दर्पदलन रथ के लिए 711 लट्ठों का इस्तेमाल किया गया है.
  2. रथ यात्रा में इस्तेमाल किए गए तीनों रथों में से प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएं और आयाम हैं.
  3. भगवान जगन्नाथ का रथ, नंदीघोष, 18 पहियों के साथ 45 फीट की प्रभावशाली ऊंचाई का होता है, जो हिंदू महाकाव्य, भगवद गीता के 18 अध्यायों का प्रतीक है.
  4. बलदेव के रथ, तलध्वज में 16 पहिए होते हैं और यह लगभग 44 फीट ऊंचा होता है.
  5. वहीं देवी सुभद्रा का रथ, देवदलन, 14 पहियों के साथ लगभग 43 फीट ऊंचा होता है.
  6. तीनों रथों को जटिल नक्काशी, चमकीले रंगों और सजावटी रूपांकनों से शानदार ढंग से सजाया जाता है, जो देवताओं की दिव्य यात्रा का प्रतीक है.
  7. मंदिर के एक अधिकारी ने बताया, “हमें वन विभाग से आवश्यक लकड़ी का बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ था. इन सभी रथों का निर्माण किए जाने से पहले एक औपचारिक पूजा भी की गई थी.”
  8. इस शुभ दिन से जगन्नाथ मंदिर की 42 दिवसीय चंदन यात्रा की भी शुरू हो जाती है. चंदन यात्रा 42 दिनों तक दो भागों में मनाई जाती है. इनमें से एक बहरा (बाहरी) चंदन होता है और दूसार भीतरा (आंतरिक) चंदन होता है और दोनों 21 दिनों का होता है.
  9. पहले 21 दिनों में, जगन्नाथ मंदिर के मुख्य देवताओं – मदनमोहन, राम, कृष्ण, लक्ष्मी और सरस्वती – की प्रतिनिधि मूर्तियों को गर्मियों की शाम के दौरान जल क्रीड़ा का आनंद लेने के लिए मंदिर से नरेन्द्र तालाब तक जुलूस के रूप में ले जाया जाता है.
  10. पांच शिव जिन्हें पंच पांडव के नाम से जाना जाता है, अर्थात् लोकनाथ, यमेश्वर, मार्कंडेय, कपाल मोचन और नीलकंठ, भी मदनमोहन के साथ नरेंद्र तालाब तक जाते हैं. मदनमोहन, लक्ष्मी और सरस्वती को एक नाव में और राम, कृष्ण और पंच पांडवों को दूसरी नाव में रखा जाता है ताकि देवता संगीत और नृत्य के साथ तालाब में शाम की सैर का आनंद ले सकें. वहीं चंदन यात्रा के अंतिम 21 दिन मंदिर के अंदर मनाए जाते हैं.

 

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