अध्यात्मिक ज्ञान से ही मावन का विकास सम्भव: भगवताचार्य संतोष

फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। श्रीराधा श्याम शक्ति मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में भगवताचार्य संतोष ने भारतीय वैदिक अध्यात्मिक ज्ञान के चिंतन की व्याख्या की। उन्होंने कहा कि अध्यात्मिक व व्यवहारिक ज्ञान, किताबी ज्ञान दोनोंं ही मानव जीवन में एक दूसरे ेके पूरक है। ज्ञान मन, बुद्धि, चिंतन और शरीर को शुद्ध एवं शांति प्रदान करता है। पहले ज्ञान ऋषियों, मुनियों के आश्रम गुरुकुल के द्वारा मानव जीवन को सफल बनाने के लिए दिया जाता था। जो अध्यात्मक के साथ ज्ञान, विज्ञान और मानव जीवन में व्यवहार की शिक्षा दी जाती थी। वर्तमान समय में शिक्षा पद्वति में व्यवसायिक शिक्षा, नई शिक्षा, कौशल विकास की शिक्षा दी जा रही है, लेकिन मानव विकास चरित्र निर्माण, समाजिक जीवन की व्यवहारिक शिक्षा का आभाव दिखायी दे रहा है। श्रीमद् भागवत कथा में ईश्वरीय ज्ञान के साथ प्राचीन भारत की सभ्यता की शिक्षा मिलती है। जिसको कथाओं में सत्संग में ज्ञान प्राप्त होता है। मानव जीवन इस लोक और परलोक दोनों जीवन बनते है। भगवान के नाम का स्मरण, हरिनाम संकीर्तन और मानव सेवा, परोपकार करने का आवाह्न किया। उन्होंने श्रीमद् भागवत में मानव जीवन की सुख-दुख की अध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए कहा कि मानव जीवन जैसा विचार, जैसी दृष्टि और कर्म करता है वैसा ही उसका स्वरुप बन जाता है। प्रभु की प्राप्ती का सरल उपाय बताते हुए भगवताचार्य ने कहा कि श्रीमद् भागवत में भगवान की लीलायें उनकी कथायें प्रेरणादायक है और उनके प्रसंगों से राजा हिमाचल की कथा, शिव-सती, पार्वती की कथा, धु्रवों के ज्ञान एवं भक्ति के प्रसंग, सती अनुसूइया का प्रसंग, गंगा का अवतरण की कथा के माध्यम से मनुष्य को श्रेष्ठ बनाने का मार्ग दर्शन किया। कथा विराम पर आरती सम्पन्न हुई और प्रसाद वितरित किया गया। सुरेन्द्र सफ्फड़, जितेन्द्र अग्रवाल, पवन अग्रवाल, डा0 मनोज महरोत्रा, गिरधर गोपाल, हर्षित सिगतिया आदि लोग मौजूद रहे।

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