यूपी के संभल में हिंसा के बाद प्रशासन के अतिक्रमण और बिजली चोरों के खिलाफ कार्रवाई के दौरान रोज सनातन के नए-नए सबूत मिलते जा रहे हैं। संभल के मंदिर के पास मिले कुएं की खुदाई आज तीसरे दिन भी जारी है। कुएं से आज हिंदू देवी-देवाताओं की तीन मूर्तियां मिली हैं। इनमें से एक गणेश जी की मूर्ति हैं और स्थानीय लोग एक मूर्ति को माता पार्वती की मूर्ति होने का दावा कर रहे हैं जो कि खंडित है।
उत्तर प्रदेश के संभल में 46 साल से बंद पड़े शिव मंदिर को प्रशासन ने खुलवाया है. अधिकारियों के मुताबिक, अतिक्रमण की सूचना मिलने पर प्रशासन की टीम मौके पर पहुंची तो इस प्राचीन मंदिर का पता चला. पुलिसकर्मियों ने मंदिर की साफ-सफाई की. मंदिर में शिवलिंग के अलावा हनुमान जी की मूर्ति मिली है. इसके अलावा यहां एक प्राचीन कुआं मिला है, जिसकी खुदाई में तीन अन्य प्रतिमाएं मिली हैं.संभल के खग्गू सराय इलाके में यह कार्तिक शंकर मंदिर है. यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना बताया जा रहा है. यह इलाका पहले हिंदू बहुल था. 82 साल के विष्णु शरण रस्तोगी उस समय को याद करते हुए कहते हैं कि कार्तिक शंकर मंदिर यहां के हिंदुओं की आस्था का केंद्र था. लेकिन 1978 के दंगे के बाद हिंदू परिवार ने यहां पूजा-अर्चना बंद कर दी.
शिव मंदिर में जलाभिषेक करने पहुंचे थे भक्त
बता दें कि संभल के नखासा थाना इलाके के मोहल्ला ख़ग्गू सराय में स्थित शिव मंदिर के कपाट खुलने के बाद खुद पुलिसकर्मियों ने मूर्तियों की सफाई की थी। इस दौरान हर-हर महादेव के जयकारों से पूरा आसमान गूंज उठा था। 46 साल बाद खुले मंदिर में पूजा शुरू कर दी गई है। आज भी बड़ी संख्या में भक्त जलाभिषेक करने पहुंचे थे। बता दें कि ये शिव मंदिर सपा सांसद ज़ियाउर्रहमान बर्क के घर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। इस शिव मंदिर पर प्राचीन महादेव मंदिर लिख दिया गया है और मंदिर परिसर में मिले कुएं की खुदाई भी की जा रही है।
हिंदू क्यों पलायन कर गए?
विष्णु शरण रस्तोगी (82 साल) ने बताया कि हमारे पूवर्जों ने यह मंदिर बनवाया था. इसके पास पीपल का पेड़ था और एक कुआं भी था. सुबह-शाम को लोग मंदिर में दर्शन करने आते थे और कुएं के पास कीर्तन होती थी. 1978 में यहां पर दंगा हुआ था और हिंदू यहां से पलायन कर गए. चारों तरफ मुस्लिम आबादी थी, इसलिए डर के कारण वहां से चले गए. विष्णु शरण रस्तोगी ने बताया कि इस इलाके में 40 से 42 हिंदू परिवार रहते थे और थोड़ी ही दूरी पर मुस्लिम परिवार रहते थे. सभी में बहुत भाईचारा था. मंदिर में सभी धार्मिक परंपराए होती थीं. 2005 में वहां पर हमारे कुनबे का आखिरी मकान बिका.