लोक संस्कृति में लोक जीवन की व्यापकता झलकती है: आलोक शुक्ला

कला लोक का स्पंदन है
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। संस्कृति विभाग द्वारा महाकुंभ पूर्व आयोजन के अंतर्गत प्रान्तीय कला साधक संगम के द्वितीय दिवस में राष्ट्रीय संगोष्ठी भारतीय ज्ञान परंपरा में कला एवं संस्कृति का योगदान विषय पर द्वितीय सत्र के साथ संपन्न हुई। मुख्य अतिथि राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर के पूर्व कुलपति प्रो0 डॉ0 साहित्य कुमार नाहर, विशिष्ट अतिथि बिरजू महाराज कथक संस्थान लखनऊ उपाध्यक्ष डॉ0 मिथिलेश तिवारी तथा अध्यक्ष डॉ0 विनोद कुमार वशिष्ठ रहे। डॉ0 आलोक बिहारी शुक्ला ने कहा कि लोक संस्कृति में लोक जीवन की व्यापकता झलकती है और कला लोक का स्पंदन है। इस तरह के कार्यक्रमों से लोक संस्कृतिक का महत्व बढ़ता है। संचालन डॉ0 रजनीश कुमार सिंह रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट द्वारा किया गया। डॉ0 संध्या पाण्डेय ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। अखिलेश पाण्डेय, डॉ0 हरिमोहन पुरवार, भूपेंद्र प्रताप सिंह, पद्माकांत शर्मा, प्रभात तुषमुल मिश्रा ने विचार प्रस्तुत किये। डॉ0 मिथिलेश तिवारी ने भारतीय ज्ञान परंपरा से ओतप्रोत लोक कलाओं में जीवन के रंगों पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि प्रो0 पंडित साहित्य कुमार नाहर ने कहा साधना और संगीत के साथ सभी कलाओं में ज्ञान पिरोया हुआ है जो समाज को गतिमान करता है। अखिलेश पाण्डेय ने शिक्षा को भारतीयता से जोड़े जाने की आवश्यकता पर बल दिया। तुषमुल मिश्रा ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आत्मा की पूर्ण रूप से जीवंत करने और दिव्य रूप में अभिव्यक्त करने का मार्ग बताया जो कला और संस्कृति के रूप में प्रकट होता है। विनोद कुमार वशिष्ठ ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कला, संस्कृति ज्ञान और स्त्री को समाज की धुरी बताया।

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