बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अहम फैसला सुनाया. कोर्ट का कहना है, सरकार मनमाने ढंग से कार्रवाई नहीं कर सकती. कार्रवाई से पहले उन्हें नोटिस देकर बताना होगा कि घर कैसे अवैध है. इसकी जानकारी जिला प्रशासन को भी दी जाए. अगर गलत तरीके से निर्माण को तोड़ा गया है तो मुआवजा भी दिया जाए और सरकारी अधिकारी पर भी कार्रवाई की जा सकती है. किसी के घर को सिर्फ इस आधार न नहीं तोड़ा जा सकता है कि वो किसी आपराधिक मामले में आरोपी है या दोषी है. कानून को ताक पर रखकर किया गया बुलडोजर एक्शन असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए यह साफ किया है कि मौलिक अधिकारों की रक्षा करने और वैधानिक अधिकारों को साकार करने के लिए कार्यपालिका को निर्देश जारी किए जा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत दिया है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि उसने शक्ति के विभाजन पर विचार किया है और यह समझा है कि कार्यपालिका और न्यायपालिका अपने-अपने कार्यक्षेत्र में कैसे काम करती हैं। न्यायिक कार्यों को न्यायपालिका को सौंपा गया है और न्यायपालिका की जगह पर कार्यपालिका को यह काम नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने आगे कहा, अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का घर केवल इस वजह से तोड़ती है कि वह आरोपी है, तो यह शक्ति के विभाजन के सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा कि जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेकर इस तरह के अत्याचार करते हैं, उन्हें जवाबदेही के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।
क्या है अनुच्छेद 142?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 कोर्ट को विवेकाधीन शक्ति देता है. आसान भाषा में समझें तो जिन मामलों में अब तक कानून नहीं बन पाया है उन मामलों में न्याय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है. सिर्फ बुलडोजर एक्शन को लेकर ही नहीं, इससे पहले तलाक के कुछ खास मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 को आधार बनाते हुए फैसला सुनाया था. 90 के दशक से अब तक कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 142 ने सुप्रीम कोर्ट को विशेष शक्ति दी. हालांकि, जब भी इसे आधार बनाकर फैसला सुनाया जाता है तो यह ध्यान रखा जाता है कि उस फैसले से किसी और को कोई नुकसान न हो. अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को दो पक्षों के बीच पूर्ण न्याय करने की विशेष शक्ति प्रदान करता है. ऐसे मामलों में अदालत किसी विवाद को इस तरह से आगे बढ़ा सकता है जो तथ्यों के अनुरूप हो. हालांकि, कई बार अनुच्छेद 142 की आलोचना भी की जा चुकी है. तर्क दिया गया कि अदालत के पास व्यापक विवेकाधिकार हैं. लेकिन न्याय को लेकर मनमाने ढंग से इसका दुरुपयोग हो सकता है.
किसी विध्वंस से 15 दिन पहले जारी होना चाहिए नोटिस’
सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी भी संपत्ति का विध्वंस तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक उसके मालिक को पंद्रह दिन पहले नोटिस न दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि यह नोटिस मालिक को पंजीकृत डाक के जरिए से भेजा जाएगा और इसे निर्माण की बाहरी दीवार पर भी चिपकाया जाएगा। नोटिस में अवैध निर्माण की प्रकृति, उल्लंघन का विवरण और विध्वंस के कारण बताए जाएंगे। इसके अलावा, विध्वंस की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी भी की जाएगी और अगर इन दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होता है तो यह कोर्ट की अवमानना मानी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आम नागरिक के लिए अपने घर का निर्माण कई वर्षों की मेहनत, सपने और आकांक्षाओं का परिणाम होता है। घर सुरक्षा और भविष्य की एक सामूहिक आशा का प्रतीक है और अगर इसे छीन लिया जाता है, तो अधिकारियों को यह साबित करना होगा कि यह कदम उठाने का उनके पास एकमात्र विकल्प था।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले जारी किया था अंतरिम आदेश
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि जब तक कोर्ट से अगला आदेश न मिले, तब तक वे किसी भी तरह के विध्वंस अभियान को रोंके। हालांकि, यह आदेश अवैध निर्माणों खासतौर पर सड़क और फुटपाथ पर बने धार्मिक ढांचों पर लागू नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और किसी भी धार्मिक संरचना को सड़कों के बीच में नहीं बनना चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक मार्गों में रुकावट डालता है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गौर किया था कि किसी व्यक्ति पर अपराध का आरोप लगने या उसे दोषी ठहराए जाने के आधार पर उसके घरों और दुकानों को बुलडोजर से तोड़ने का कोई आधार नहीं है। जस्टिस बी.आर. गवाई ने कहा था, हम एक धर्म निरपेक्ष देश हैं, जो भी हम तय करते हैं, वह सभी नागरिकों के लिए करते हैं। किसी एक धर्म के लिए अलग कानून नहीं हो सकता। उन्होंने यह भी कहा था कि किसी भी समुदाय के सदस्य के अवैध निर्माण को हटाया जाना चाहिए, चाहे वह किसी भी धर्म या विश्वास का हो।
1- कोई मनमानी कार्रवाई नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य या अधिकारी द्वारा नियमों के विरुद्ध आरोपी या दोषी के खिलाफ बुलडोजर एक्शन नहीं लिया जा सकता.
2- मनमानी हुई तो देना होगा मुआवजा: कोर्ट का कहना है कि अगर राज्य सरकार मनमाने तरीके से दोषी या आरोपी के अधिकार का उल्लंघन करती है तो मुआवजा दिया जाना चाहिए.
3- मौलिक है घर का अधिकार: कोर्ट का कहना है कि घर सिर्फ एक संपत्ति नहीं होता, यह परिवार की सामूहिक आशाओं का प्रतीक होता है. जीवन का अधिकार एक मौलिक अधिकार है और आश्रय का अधिकार इसका एक पहलू है
4- अधिकारों की रक्षा करना अदालत की जिम्मेदारी: सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण के साथ तीन फैसलों का जिक्र करते हुए कहा, अगर कानून के खिलाफ जा कर कोई कार्रवाई की जाती है तो अधिकारों की रक्षा करने का काम अदालत का है.
5- कार्यपालिका न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती: कोर्ट ने साफ कहा है कि क्या राज्य सरकार न्यायिक कार्य कर सकती है? राज्य मुख्य कार्यों को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकता है. अगर राज्य इसे ध्वस्त करता है तो इसे अन्यायपूर्ण माना जाएगा. बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के संपत्तियां नहीं तोड़ी जा सकती हैं.