फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद्र की जयंती पर हिन्दी प्रेमियों ने उन्हें याद कर श्रद्धासुमन अर्पित किये। मुंशी प्रेमचंद्र के उपन्यास आज भी दिलों को छू लेते हैं।
कहानी व उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद्र का जन्म 31 जुलाई 1770 को ग्राम लहमी वाराणसी उत्तर प्रदेश में हुआ था। वह अध्यापक, लेखक व पत्रकार थे। उनकी कृति गोदान, रंगभूमि, कर्मभूमि, निर्मला, मंगलसूत्र, कायाकल्प, गवन, प्रेमाश्रम प्रमुख हैं।
मान्यवर काशीराम राजकीय महाविद्यालय की प्रोफेसर डॉ0 शालिनी ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद्र का कार्य क्षेत्र अध्यापन के साथ लेखन व पत्रकारिता के अलावा नाटक, कहानी व उपन्यास के वह पुरोधा रहे। उनके प्रमुख नाटक संग्राम, कर्बला, प्रेम की वेदी, पढक़र मन प्रसन्न होता है। वह सामाजिक कार्यों में भी रुचि रखते थे। कहानी और उपन्यास में मुंशी प्रेमचंद्र को महारथ हासिल थी। उनका बचपन का नाम धनपतराय था। उनकी प्रमुख कृतियां गोदान, गवन, रंगभूमि थीं। कायमगंज के प्राथमिक विद्यालय मदारपुर के प्रधानाध्यापक राजकिशोर शुक्ला ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद्र की कहानियां पंच परमेश्वर, गुल्लीडंडा, दो बैलों की कथा, ईदगाह, बड़े भाई साहब, पूस की रात, ठाकुर का कुआं, बूढ़ी काफी, तावान, विध्वंश, दूध का दाम, मंत्र आदि कहानियां प्रमुख हैं। आज भी उन्हें पढक़र मन तरोताजा हो जाता है। उन्होंने जीवन भर पठन पाठन के साथ लेखन किया और इतना कुछ लेखन के माध्यम से कहानी संग्रह को बहुत कुछ समर्पित किया।किसान उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कुंदन गनेशपुर के प्रधानाचार्य संतोष कुमार ने बताया मुंशी प्रेमचंद्र का जीवन संघर्ष पूर्ण रहा। उनकी लेखनी देश प्रेम व सामाजिक विधाओं पर समर्पित रही। साधारण परिवार में जन्म लेने वाले मुंशी प्रेमचंद्र की रचनायें आज भी पढऩे को मन करता है। उन्हें हिन्दी, उर्दू, फारसी के अलावा कई भाषाओं का ज्ञान था। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर महान उपन्यास सम्राट बने।