छठ महापर्व का आज तीसरा दिन है। आज डूबते सूर्य को सायंकालीन अर्घ्य दिया जाएगा और इसकी तैयारियां जोरों पर हैं। छठ पर्व की शुरुआत कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन नहाय खाय से होती है। पंचमी को खरना, षष्ठी को डूबते सूर्य को अर्घ्य और उगते सूर्य सप्तमी को अर्घ्य देकर व्रत समाप्त होता है। इस चार दिवसीय त्योहार में सूर्य और छठी मैया की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत करना बहुत कठिन माना जाता है क्योंकि इस व्रत को कठोर नियमों के अनुसार 36 घंटे तक रखा जाता है। आस्था का महापर्व छठ खासतौर से दिल्ली बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है. चार दिवसीय पर्व सूर्यदेव और छठी मैया को समर्पित होता है. छठ पूजा का धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्व माना गया है. छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन नहाय-खाय से होती है. यह त्योहार 4 दिनों तक चलता है. छठ पूजा के दूसरे दिन खरना का परंपरा भाई जाती है. छठ के तीसरे दिन यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है.
छठ के तीसरे दिन ढलते सूर्य को अर्घ्य देने का समय
आज सूर्यास्त का समय 07 नवंबर 2024 दिन गुरुवार को शाम 5 बजकर 31 मिनट पर है। आज इस समय पर छठ पर्व के तीसरे दिन सूर्य भगवान को पहला अर्घ्य दिया जाएगा। इसे अस्ताचलगामी सूर्य अर्घ्य कहा जाता है, जिसका अर्थ है ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य देना।
छठ पूजा का महत्व
कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन छठ का त्यौहार मनाया जाता है। छठ का व्रत संतान की लंबी आयु और समृद्धि की लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से परिवार में सदैव खुशहाली बनी रहती है। वहीं अगर जिनकी गोद सूनी और वे छठ का व्रत करती हैं तो छठी मईया की कृपा से जल्द उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। बता दें कि छठ पूजा में डाला का विशेष महत्व होता है। डाला का अर्थ है बांस का डलिया। इस डाला को कोई पुरुष या महिला अपने सिर पर रखकर तालाब या नदी किनारे बने छठ घाट तक ले जाता है। इस डाला में छठ पूजा से जुड़ी सभी पूजा सामग्री रहती है।
कर्ण ने भी सूर्यदेव को दिया था अर्घ्य
धर्म ग्रंथों में वर्णित पौराणिक कथाओं के अनुसार, महाभारत काल में माता कुंती के पुत्र दानवीर कर्ण ने भी सूर्यदेव को जल अर्घ्य दिया था. कर्ण को माता कुंती के अलावा, सूर्यदेव का पुत्र भी माना जाता है. सूर्य देव की दानवीर कर्ण पर विशेष कृपा थी. ऐसा कहा जाता है कि कर्ण रोजाना सुबह उठकर घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्यदेव को अर्घ्य देते थे. सूर्यदेव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बन गए थे. इसके अलावा, छठ पर्व से जुड़ी एक और कथा का पुराणों में उल्लेख मिलता है. इस कथा के अनुसार, महाभारत में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए के खेल में हार बैठे थे, तब द्रौपदी ने भी छठ व्रत रखा था. द्रौपदी के व्रत और पूजा से प्रसन्न होकर षष्ठी मैया ने पांडवों को उनका राज्य वापस लौटा दिया था