फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। गंगा नगर में चल रहे 19वें धार्मिक अनुष्ठान के चतुर्थ दिवस पर वक्ता दाताराम ने पं0 दाताराम ने जड़भरत की कथा सुनाई। उन्होंने कहा कि इनका असली नाम भरत था। जो पूर्व से स्वयंभुव वंशी ऋषभदेव के पुत्र थे। मृग के छौने में तन्मय होने के कारण इनका ज्ञान अवरुद्ध हो गया और वे जड़भरत हो गये। इनके गुरु कपिल थे। भरत जी का विवाह विश्वरुप की कन्या पंचगनी से हुआ था। देवी पंचगनी ने पांच संतानों को जन्म दिया। पिता ऋषभदेव ने भरत को राज कार्य के योग्य समझकर उनका राज्याभिषेक कर दिया और स्वयं तपस्या के लिए वन में चले गये। राजा भरत एक योग्य शासक थे। उन्होंने पूजा के हित में बहुत कार्य किये। उन्होंने तमाम यज्ञ किये। उनके पांचों पुत्र बहुत धार्मिक और सक्षम थे। भरत ने अपना राज्य कार्य उन्हें सौंप कर तपस्या हेतु वन चले गये और वहां पर एक हिरणी के बच्चे को देखा कि हिरणी की मृत्यु हो गयी और उसका बच्चा दुखी दिखायी दिया। भरत का मन उसी हिरणी के बच्च्चे में लग गया और वह उसकी सेवा में लग गये। इसलिए उनका नाम जड़भरत पड़ गया। मानस वक्ता रामबाबू पाठक ने प्रभु श्रीराम से हनुमान और सुग्रीव की मित्रता की कथा सुनाई। संचालन महेश पाल सिंह उपकारी ने किया। इस अवसर पर शिवकुमार मिश्रा, उमेश मिश्रा, मैकूलाल, वैभव सोमवंशी, सर्वेश अवस्थी, ऋषिपाल सिंह, निर्दोष शुक्ल, अखिलेश त्रिवेदी आदि सहयोगी मौजूद रहे।