राम राज्य स्थापित करने के लिए रामत्व के साथ एकाकार होना जरूरी-प्रो. मंजूषा
अविवि में वर्तमान परिवेश में राम राज्य विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन
( अमिताभ श्रीवास्तव )
समृद्धि न्यूज़ अयोध्या। उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लखनऊ एवं रत्नाकर शोधपीठ,डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्त्वावधान में वर्तमान परिवेश में राम राज्य विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. हरीश कुमार शर्मा, डीन सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु उपस्थित रहे।उन्होंने छात्रों को उद्बोधित करते हुए कहा कि राम राज्य केवल राजा नहीं ला सकता प्रजा का सहयोग आवश्यक है,तभी यह कल्पना से यथार्थ बन पाएगा।‘राम प्रताप विषमता खोई‘ को स्थापित करने के लिए वर्ग विभाजन को मनुष्य जाति,धर्म,वर्ण,समाज किसी भी स्तर पर यह समाप्त करना होगा। यह आज के प्रगतिवादी विचार की ही आधारभूमि है जो मानस में उद्धृत है।इसको धरातल पर उतारने में शासक और समाज दोनों सहयोगी होते हैं।मुख्य वक्ता के रूप में प्रोफेसर मंजूषा मिश्रा प्राचार्य राजमोहन गल्र्स पीजी कॉलेज अयोध्या की उपस्थिति रही।उन्होंने कहा कि सियाराम मय सब जग जानी करहुँ प्रणाम जोर जुग पाणी राम के राज्य को हम तभी समझ सकते हैं जब राम को समझे क्योंकि राम राज्य स्थापित करने के लिए रामत्व के साथ एकाकार होना आवश्यक है।राम राज्य सहज नहीं है। पहले राम होना होगा राम के चरित्र को समझना होगा राम जैसा समर्पण राम जैसी मर्यादा चरित्र में उतारनी होगी निर्भीक होना होगा निर्णायक भी होना होगा नई दिशा नई चेतना का संवाहक बनना होगा।यह चुनौती पूर्ण है किंतु पीढ़ियों के संस्कार से हम राम राज्य की नींव निश्चित रूप से रख पाएंगे।विशेष वक्ता के रूप में डॉ. जय सिंह यादव सिद्धार्थ विश्वविद्यालय ने कहा कि राम के मूल में है त्याग।त्याग का जो तप है वह प्रत्येक दशा में न्याय स्थापना के पक्ष में हुआ केवल राज पाठ और वैभव ही नहीं अपनों का त्याग भी माता का त्याग,पिता का त्याग,पत्नी का त्याग,पुत्रों का त्याग,लोभ मोह का त्याग कर्तव्य रूपी धर्म की स्थापना के लिए किया गया। राम राज्य की परिकल्पना में दीन,दुखी,दरिद्र,गुणहीनता आदि का स्थान नहीं है इसे निश्चित करने के लिए त्याग जो किया गया वह अनुवांशिक है हरिश्चंद्र से होते हुए दशरथ और फिर राम तक आता है।इस अवसर पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव का निर्देशन प्राप्त हुआ जिसमें अंजू सिंह प्रभारी भाषा संस्थान व डॉक्टर रश्मि सील ने अपने विचार रखे।मोहित बृजेंद्र कुमार यादव शशि गरिमा सिंह सहित अन्य भी मौजूद रहे।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डीन कला संकाय प्रो0 आशुतोष सिन्हा ने कहा कि अंत्योदय की परिकल्पना राम राज्य से ही सिद्ध हो सकती है।लोभ और संग्रह की प्रवृत्ति को समाप्त करना होगा यही हमारे भीतर का रावण है।सत्य का अर्थ केवल वचन से नहीं है यह आचरण से जुड़ा है यह हमारे विचार ,वाणी और कर्म तीनों में दर्शनीय होना चाहिए।अधिष्ठाता छात्र कल्याण नीलम पाठक की उपस्थिति ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। रत्नाकर शोधपीठ के समन्वयक डॉ0 सुरेंद्र मिश्रा ने कार्यक्रम का संयोजन किया।कार्यक्रम का संचालन अवधी भाषा विभाग की डॉ. प्रत्याशा मिश्रा ने किया।इस अवसर पर डॉ. स्वाति सिंह,डॉ. सरिता पाठक,डॉ रीमा सिंह,डॉ सुमन लाल,डॉ प्रतिभा देवी सहित अन्य सहयोगी उपस्थित रहे।