संत सियाराम बाबा ने बुधवार 11 दिसंबर को आखिरी सांस ली. उन्होंने मोक्षदा एकादशी और गीता जयंती के दिन सुबह 06 बजकर 10 मिनट पर भट्टयान बज़ुर्ग स्थित आश्रम में अपने प्राण त्यागे. बताया जा रहा है कि संत सियाराम बाबा पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. उन्हें निमोनिया था. अस्पताल में इलाज कराने के बाद उन्होंने आश्रम आने का निर्णय किया था, जहां डॉक्टरों द्वारा उनका इलाज चल रहा था. लेकिन इलाज के दौरान ही बुधवार सुबह उनके निधन की खबर सामने आई. शाम में उनका अंतिम संस्कार किया. मोक्षदा एकादशी के दिन संत सियाराम बाबा ने अपने प्राण त्यागे, जिसके बाद ऐसा कहा जा रहा है कि सियाराम बाबा को प्रभु के चरणों में स्थान मिला है.
एकादशी के प्रभाव से व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मिलती है मुक्ति
हिंदू धर्म के अनुसार मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी कहा जाता है. साथ ही इस एकादशी के प्रभाव से व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है. इस एकादशी के प्रभाव से ही राजा वैखानस ने अपने मितृ पिता को नरक की यातनाओं से मुक्ति दिलाकर उनका उद्धार किया था. बाबा प्रतिदिन रामायण पाठ का पाठ करते और आश्रम पर आने वाले श्रद्धालुओं को स्वयं के हाथों से बनी चाय प्रसादी के रूप में वितरित करते थे। बाबा के लिए गांव से पांच छह घरों से भोजन का टिफिन आता था, जिसे बाबा एक पात्र में मिलाकर लेते थे। खुद की जरूरत के अनुसार भोजन निकाल कर बचा भोजन पशु-पक्षियों में वितरित कर देते थे। बाबा प्रत्येक श्रद्धालु से मात्र 10 रुपये दान स्वरूप लेते थे। बाबा ने आश्रम के प्रभावित डूब क्षेत्र हिस्से के मिले मुआवजे के दो करोड़ 58 लाख रुपये क्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान नागलवाड़ी मंदिर में दान किए थे। वही लगभग 20 लाख रुपये व चांदी का छत्र जाम घाट स्थित पार्वती माता मंदिर में दान किया
आश्रम में ही मिल रही थी मेडिकल फेसिलिटी
खरगोन के सीएमएचओ डॉक्टर एम एस सिसोदिया ने बताया कि मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद आश्रम में ही मेडिकल फेसिलिटी उपलब्ध कराई गई थी। मेडिकल कॉलेज इंदौर की टीम ने बाबा के स्वास्थ्य परीक्षण के बाद जो सलाह दी गई है उसी के मुताबिक उपचार दिया जा रहा था।
बाबा ने पेड़ के नीचे बैठकर की तपस्या
बाबा ने कई सालों तक गुरु के साथ पढ़ाई की और तीर्थ भ्रमण किया। वे 1962 में भट्याण आए थे। यहां उन्होंने एक पेड़ के नीचे मौन रहकर कठोर तपस्या की। वहीं आश्रम पर मौजूद अन्य सेवादारों ने बताया कि उनकी दिनचर्या भगवान राम व मां नर्मदा की भक्ति से शुरू होकर यही खत्म होती थी।