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आज से शारदीय नवरात्रि शुरू: पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि और घटस्थापना का विशेष महत्व

3 अक्टूबर को शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही हैं. नवरात्रि की पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मां बेहद दयालु और कृपालु हैं. मां शैलपुत्री के मुख पर कांतिमय तेज झलकता है. मां शैलपुत्री बाएं हाथ में कमल पुष्प और दाएं हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं, इनकी सवारी वृषभ है. मां अपने भक्तों का उद्धार कर दुखों को दूर करती हैं. मां शैलपुत्री का जन्म पर्वतों के राजा हिमालय के घर में पुत्री के रूप में हुआ था, इसीलिए इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. देवी शैलपुत्री को देवी पार्वती के नाम से भी जाना जाता है.  हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्योहार का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि पर देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि रहती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के साथ विधि-विधान से मां दुर्गा की पूजा और अनुष्ठान आरंभ होते हैं। नवरात्रि के पहले दिन देवी मां पहले स्वरूप मां शैलपुत्री की आराधना की जाती है। 3 अक्तूबर से शारदीय नवरात्रि प्रारंभ हो गए हैं। नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में मां के आगमन का स्वागत करते हैं और कलश स्थापना करते हुए विधिवत रूप से 9 दिनों तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व शुरू हो जाता है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-आराधना की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप मां शैलपुत्री का आराधना की जाती है।  देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री को हिमालय की पुत्री माना जाता है। मान्यता है इससे पूर्व उनका जन्म राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में हुआ था। जिनका विवाह भगवान शिव से हुआ था।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। जब देवी सती को इसके बारे में पता चला तो वह अपने पिता के घर बगैर निमंत्रण के ही पहुंच गईं। जहां पर महादेव के प्रति अपमान महसूस होने पर उन्होंने स्वयं को महायज्ञ में जलाकर भस्म कर लिया। जब यह बात भगवान शिव को पता चली तो उन्होंने यज्ञ को ध्वंश करके सती को कंधे पर लेकर तीनों में विचरण करने लगे।

मां शैलपुत्री का भोग  

मां शैलपुत्री चन्द्रमा से सम्बन्ध रखती है. इन्हे सफ़ेद रंग खाद्य पदार्थ का भोग लगाया जाता है जैसे खीर, रसगुल्ले, पताशे आदि. बेहतर स्वास्थ्य और लंबी आयु के लिए मां शैलपुत्री को गाय के घी का भोग लगाएं या गाय के घी से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं.

मां शैलपुत्री का प्राथना मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:।

मां शैलपुत्री का उपासना मंत्र

वन्देवांछितलाभाय चन्दार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।

मां शैलपुत्री की आरती

शैलपुत्रीमां बैल असवार।

करेंदेवता जय जयकार।

शिव शंकरकीप्रिय भवानी।

तेरीमहिमा किसी ने ना जानी।

पार्वतीतूउमा कहलावे।

जो तुझेसिमरे सो सुख पावे।

ऋद्धि-सिद्धिपरवान करे तू।

दया करे धनवानकरे तू।

सोमवारकोशिव संग प्यारी।

आरतीतेरी जिसने उतारी।

उसकीसगरी आस पुजा दो।

सगरेदुख तकलीफ मिला दो।

घी का सुंदरदीप जला के।

गोलागरी का भोग लगा के।

श्रद्धाभाव से मंत्र गाएं।

प्रेमसहित फिर शीश झुकाएं।

जय गिरिराजकिशोरी अंबे।

शिव मुख चंद्रचकोरी अंबे।

मनोकामनापूर्ण कर दो।

भक्तसदा सुख संपत्ति भर दो।

भगवान विष्णु ने भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए सती के शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से काटकर 51 भागों में विभक्त कर दिया। मान्यता है कि माता सती के टुकड़े जहां-जहां पर गिरे वे सभी शक्तिपीठ कहलाए। इसके बाद देवी सती ने शैलराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में दोबारा जन्म लिया, जिन्हें माता शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है।

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