बांग्लादेश में भारी विरोध-प्रदर्शन के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना को पिछले हफ्ते अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा और देश भी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा. अपने नाटकीय इस्तीफे और देश छोड़कर भारत आने के बाद शेख हसीना ने पहली बार खुलकर बात की है, जिसमें उन्होंने अपने अप्रत्याशित निष्कासन में संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका की ओर इशारा किया है. पूर्व पीएम शेख हसीना ने कहा, “मैंने देश में आगे की हिंसा को देखने से बचने के लिए इस्तीफा दे दिया. उनका मकसद छात्रों की लाशों पर सत्ता हासिल करना था, लेकिन मैंने इस्तीफा देकर उन्हें ऐसा होने से रोका.” बांग्लादेश में अभी भारी राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति है, हालांकि वहां पर अंतरिम सरकार भी अस्तित्व में आ गई है.अब भारत में 76 वर्षीय शेख हसीना में भारत में अपने करीबी सहयोगियों से यह खास बातें साझा की हैं। अपने पत्र में शेख हसीना ने अमेरिका पर बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन की योजना बनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि अगर उन्हें मौका मिला तो अपने संबोधन में ये बातें कहेंगीं। शेख हसीना ने कहा, ‘मैंने इसलिए इस्तीफा देने का फैसला लिया क्योंकि मैं और लोगों को मरते हुए नहीं देखना चाहती थी। वे छात्रों की लाश पर चढ़कर सत्ता हासिल करना चाहते थे लेकिन मैंने इसकी इजाजत नहीं दी। इस वजह से मैंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।’
अमेरिका पर लगाए गंभीर आरोप
शेख हसीना ने इसके बाद अमेरिका पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, अगर में अमेरिका को सेंट मार्टिन द्वीप को को सौंपकर बंगाल की खाड़ी पर राज करने की अनुमति देती, तो मैं सत्ता में बनी रह सकती थी। मैं अपने देश के लोगों से प्रार्थना करती हूं कि ऐसे अतिवादियों के झांसे में ना आएं।’ आपको बता दें कि सेंट मार्टिन द्वीप तीन वर्ग किलोमीर का क्षेत्र है और बंगाल की खाड़ी के उत्तर-पूर्व का क्षेत्र है। यह बांग्लादेश के सुदूर दक्षिण में स्थित है।
मेरे शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा गया: हसीना
प्रदर्शनकारी छात्रों को संबोधित करते हुए शेख हसीना ने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी भी प्रदर्शनकारी छात्रों को ‘रजाकार’ नहीं कहा था. अवामी लीग की नेता शेख हसीना ने कहा, “आपको भड़काने के लिए मेरे शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया. आप लोग उस दिन का मेरा पूरा वीडियो देखें ताकि यह समझ सकें कि षड्यंत्रकारियों ने देश को अस्थिर करने के लिए आपकी मासूमियत का किस तरह से फायदा उठाया है.”देश में “रजाकार” शब्द का इस्तेमाल अक्सर उन लोगों के लिए किया जाता है, जिनके बारे में माना जाता है कि वे 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना के सहयोगी थे.