मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक
फर्रुखाबाद, समृद्धि न्यूज। हिन्दी प्रेमियों ने माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती पर उन्हें याद किया है। माखन लाल चतुर्वेदी का जन्म ४ अपै्रल १८८९ को मध्यप्रदेश के हौशंगाबाद जिले के बाबई नामक गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम नंदलाल चतुर्वेदी था। चतुर्वेदी न केवल प्राथमिक शिक्षा घर में ही रहकर प्राप्त की। वह अपनी लगन के चलते अंगे्रजी, गुजराती, बंगाली तथा संस्कृति एवं हिन्दी भाषा के लिए पहचाने जाते है। माखन लाल चतुर्वेदी ने पत्रकारिता के साथ कवि व हिन्दी साहित्य में अपनी छाप छोड़ी है।
कांशीराम मान्यवर राजकीय महाविद्यालय की प्राचार्या डा0 शालिनी ने बताया कि माखन लाल चतुर्वेदी ने पूरा जीवन साहित्य और पत्रकारिता को समर्पित किया। वह राष्ट्रीय कवि के साथ साहित्यकार एवं देश प्रेमी थे। छोटी सी उम्र में शिक्षक बनने के बाद उन्होंने नौकरी छोडक़र कई अखबार में सम्पादकीय लेख लिखे और सम्पादक भी रहे। उन्होंने हिम तरंगिनी, युग चरण, साहित्य देवता, वेणु लो गूंजे धारा, कैसा छंद बना देती है, अग्निपथ और पुष्प की अभिलाषा, दीप जले जैसी कई कविताएं और किताबें लिखीं। उन्हें हिंदी में पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और 1963 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
विकास खण्ड कायमगंज के प्राथमिक विद्यालय मदारपुर के प्रधानाध्यापक राजकिशोर शुक्ला ने बताया कि माखन लाल चतुर्वेदी की रचानाओं में प्रकृति प्रेम के साथ प्यार और बलिदान एवं देश भक्ति का अनूठा संगम दिखायी देता है। उनके द्वारा स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिलासपुर के सेन्ट्रल जेल में लिखी गई लोकप्रिय रचना पुष्प की अभिलाषा का सुंदर उदाहरण है। माखन लाल चतुर्वेदी का साहित्य और देश के लिए अमूल्य योगदान हमेशा प्रेरित करता रहेगा।
कानोडिय बालिका इंटर कालेज की सहायक अध्यापिका मंजू सिंह ने बताया कि माखन लाल चतुर्वेदी कवि के साथ वे अच्छे लेखक एवं पत्रकार थे। वह देश की आजादी के लिए कई बार जेल भी गए। माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म ४ अपै्रल १८८९ को मध्य प्रदेश प्रांत में हुआ था। वह जब १६ के थे तब एक स्कूल के शिक्षक बने गये। छोटी सी उम्र में किताबों का बहुत शौक था। बाद में राष्ट्रवादी प्रभाम कर्मवीर और प्रताप के संपादक बने। उन्होंने अपनी शिक्षण नौकरी छोडक़र खुद को पत्रकारिता के आंदोलन में समर्पित कर दिया। उनका निधन 30 जनवरी 1968 को हुआ था।