यज्ञ भगवान नारायण का साक्षात स्वरूप है: स्वामी धराचार्य

समृद्धि न्यूज़ अयोध्या। अशर्फी भवन में आयोजित विविध धार्मिक अनुष्ठानों में आज प्रातः काल दक्षिणात विद्वानों द्वारा भगवान का विशेष पूजन 108 हवन द्रव्यों से विशेष आहुतियों के साथ मध्यान काल में यज्ञ की पूर्ण आहूति हुई।यज्ञ की महिमा बताते हुए स्वामी श्री धराचार्य जी महाराज ने कहा कि यज्ञ भगवान नारायण का साक्षात स्वरूप है। यज्ञ करने से ही अंतर्मन प्रकृति एवं पर्यावरण शुद्ध होता है। उन्होंने कथा का विस्तार करते हुए कहा कि शरणागत रक्षक हैं। प्रभु इंद्र व वरुण आदि ने प्रभु चरणों में शरणागति की।प्रभु शरण में आए इंद्र,ब्रम्हा व वरुण आदि को पुनः अपना लेते हैं, इससे सिद्ध होता है प्रभु पुरुषोत्तम है।उन्होंने कहा कि ऐश्वर्य से जो परिपूर्ण है,वही परब्रह्म है,वही भगवान है।अपने सभी इंद्रियों से जो कृष्ण रस का पान करें वही गोपी है।प्रभु श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ बिहार तो किया लेकिन मन को उन्नत अवस्था में स्थिर कर दिया।शरद ऋतु में कदंब वृक्ष के ऊपर बैठकर बंसी निनाद करते हैं।जीव रूपी गोपियां प्रभु कृष्ण के आमंत्रण पर सभी कार्यों को छोड़कर प्रभु के समीप जाती हैं और भगवान श्री कृष्ण गोपियों को लौटने के लिए तर्क देते हैं। इस पर सभी गोपियां कन्हैया के तर्कों को सुनकर कहती हैं कि प्रभु संसार के जो संबंध आपने हमें बताए हैं,वह संबंध केवल शरीर से हैं और शरीर तक ही सीमित हैं।यह संबंध बदल सकते हैं लेकिन जीव और आत्मा का संबंध नहीं बदल सकता।गोपियों के तर्क को सुनकर प्रभु मौन हो गए।गोपियों की अनन्य भक्ति देखकर रास रचैया श्री कृष्ण प्रभु सभी गोपियों के साथ दिव्य रास करते हैं।उन्होंने बताया कि प्रभु भक्त शंकर जी मां गौरा के साथ रास मंडल में पधारते हैं।सर्वप्रथम गूंगी सखी के रूप में शंकर जी के साथ प्रभु रास विहार करते हैं।अपने चरण कमल शिवजी के मस्तक पर रखते हैं।आज भी प्रभु नित्य गोवर्धन में भगवान गोपेश्वर महादेव के साथ रात्रि में रासलीला करते हैं।पापी कंस के बढ़ते अत्याचार को देख कर देवर्षि नारद कंस के पास जाते हैं और अक्रूर जी को दूत बनाकर कंस भगवान श्रीकृष्ण को गोकुल से मथुरा बुलाते हैं।पापी कंस के पास रहकर भी अक्रूरजी कन्हैया को सारी बात सच सच बता देते हैं।भगवान श्रीकृष्ण मां देवकी और वसुदेव को कारागृह से मुक्त कराने के लिए मथुरा जाने को तैयार हो जाते हैं।भगवान कृष्ण के जाने का समाचार सुनकर सभी ग्वाल बाल गोपियां रुदन करने लगती हैं।प्रभु मथुरा नगरी पधारते हैं।सभी मथुरा नगर वासी कान्हा का दर्शन पाकर प्रसन्न हो जाते हैं।अनेकों जन्मों से प्रभु का इंतजार कर रही कुब्जा प्रभु को चंदन लगाती है।कान्हा का स्पर्श करने से कुब्जा नवीन रूप पा जाती है।प्रभु के कंस के महल में पहुंचते हैं द्वार पर कंस ने प्रभु को मारने के लिए अनेकों योद्धा खड़े किए हैं।कन्हैया सभी का वध करते हुए महल में प्रवेश करते हैं।पापी कंस को प्रभु काल के रूप में ऋषि जनों को ब्रह्म के रूप में मथुरा वासियों को प्रभु कन्हैया के रूप में जिसका जो भाव है,प्रभु उसी रूप में दिखाई दे रहे हैं।प्रभु पापी कंस का संहार करते हैं।पिता वसुदेव मां देवकी को कारागृह से मुक्त कराते हैं। कंस के पिता उग्रसेन को राजगद्दी पर बिठाते हैं।प्रभु संदीपन ऋषि के आश्रम में विद्या अध्ययन करने जाते हैं।64 दिन में सारी विद्या का अध्ययन करके प्रभु वापस आते हैं।विश्वकर्मा को आदेश देकर समुद्र के समीप दिव्य द्वारिकापुरी का निर्माण कराते हैं।राजा भीष्मक की पुत्री साक्षात परम मां भगवती जगतजननी लक्ष्मी स्वरूपा रुकमणी जी अपने अनंत प्रियतम प्रभु को प्रेम पत्र देते हुए अपना भाव निवेदन करती हैं। ब्राहमण देवता पत्र प्रभु श्री कृष्ण के हाथ में देते हैं।पत्र को पढ़ कर के प्रभु की आंखों से अश्रुपात होने लगता है।रथ में बैठकर प्रभु मां रुकमणी को लेने के लिए जाते हैं।मां रुकमणी को रथ में बिठाकर प्रभु द्वारिका में आते हैं। दिव्य मंडप सजाया जाता है। सभी वैदिक विधियों के द्वारा भगवान श्री कृष्ण मां रुक्मणी का विवाह होता है।श्री कृष्ण और रुक्मणी जी का दिव्य कल्याण उत्सव सभी भक्तों ने धूमधाम से मनाया सभी भक्तजन कथा को सुनकर हर्ष का अनुभव कर रहे कल कथा का विश्राम दिवस है।

 (अमिताभ श्रीवास्तव)

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