प्रभु चरणों में जीव को बिना फल की इच्छा किए जाना चाहिए: स्वामी धराचार्य

अष्टोत्तर शत श्रीमद् भागवत कथा का सातवां दिन

समृद्धि न्यूज़ अयोध्या। रामनगरी कि सिद्ध पीठ अशर्फी भवन में चल रहे अष्टोत्तर शत श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिन व्यास पीठ पर विराजित अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री धराचार्य जी महाराज भागवत कथा का विस्तार करते हुए कहते हैं कि मां भगवती जगतजननी लक्ष्मी स्वरूपा रुकमणी जी के द्वारिका आ जाने पर द्वारिका नगरी की शोभा और बढ़ जाती है।प्रभु श्री कृष्ण द्वारिका में अनेकों लीलाएं करते हैं।भगवान के बचपन का मित्र सुदामा भगवान श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका जाते हैं।सुदामा के आगमन की सूचना सुनते ही भागकर प्रभु द्वार पर गए व सुदामा को गले लगाया।सुदामा चरित्र से प्रेरणा मिलती है।प्रभु चरणों में जब भी जीव जाए सुदामा जी की तरह बिना फल प्राप्ति की इच्छा के जाए।दीनबंधु दयासिंधु भगवान शरणागत जीव को अपना लेते हैं।भगवान की कृपा जिस भक्त पर हो जाए वह भक्त संसार के सभी भौतिक सुखों को प्राप्त कर प्रभु धाम की प्राप्ति करता है।सुखदेव जी महाराज राजेंद्र परीक्षित से कहते हैं कि,हे राजन् मैंने तुम्हें सात दिन तक कथा श्रवण कराई। आज कथा का सप्तम दिवस है। तक्षक आ रहा होगा,तुम्हारी मृत्यु होगी कि नहीं होगी?परीक्षित जी महाराज गुरुदेव के चरणों में प्रणाम करते हुए कहते हैं कि प्रभु आप जैसे उत्तम वक्ता के द्वारा मैंने भागवत रूपी अमृत का पान किया है तो मेरी मृत्यु क्यों होगी? स्थूल शरीर पंचभौतिक तत्वों से मिलकर बना है,उसी में विलीन हो जाएगा।हे गुरुदेव आपने मुझ पर बहुत बड़ी कृपा की है। भागवत कथा के रसास्वादन को करके जो जीव भक्ति ज्ञान वैराग्य में होकर परमात्मा के मार्ग को अपना लेते हैं और उन्हें इन चौरासी लाख योनियों में नहीं भटकना पड़ता और परमपिता परमात्मा अपने चरणो में उन्हें स्थान देते हैं।भागवत कथा के सभी चरित्र प्रेरणास्पद है।हमें भागवत कथा को सुनकर भक्ति मार्ग को अपनाना चाहिए। देश के विभिन्न प्रांतो से पधारे हुए सभी भक्तजन कथा को सुनकर आनंदित हो रहे है।

(अमिताभ श्रीवास्तव)

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